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________________ 442 श्री मेठिया बैन पन्थमाला ~~rnmmmm mmmm ~ or or narr m ammmmmmmmmm में छोड़ दिया जाय तो वह मिट्टी के लेप से भारी होने के कारण पानी के तल भाग में नीचे चला जायगा / पानी में पड़ा रहने के कारण ज्यों ज्यों उसका लेप गल फर उतरता जायगा त्यों त्यों वह ऊपर की तरफ उठता जायगा। जब उस पर से आठों लेप उतर जायेंगे तव वह तुम्वा पानी के ऊपर भाजायगा। तुम्वेमा दृष्टान्त देकर शास्त्रकार ने यह बताया कि इसी प्रकार जीव प्राणातिपात आदि अठारह पापस्थानों का सेवन कर पाठ कर्मों का उपार्जन करते हैं जिससे भारी होकर वे नरकादि नीच गतियों में जाते हैं। आठ कर्मों से मुक्त हो जाने के पश्चात् जीव लोकाग्र में स्थित सिद्धस्थान (मुक्ति) में पहुँच जाते हैं। भतः जीवों को प्राणातिपात श्रादि पापों से निवृत्ति करनी चाहिए। (7) चार पुत्रवधुओं की कथा सातवां 'रोहिणी झाल' अध्ययन-पाँच महाव्रतों का सन्यग् पालन करने वाले आराधक साधु को शुभ फल की प्राप्ति होती है और विराधक को अशुभ फल की प्राप्ति / इस वात को बताने के लिए सातवें अध्ययन में रोहिणी श्रादि का दृष्टान्त दिया गया है। __राजगृह नगर के अन्दर धन्ना नाम का एक सार्थवाह रहता था। उसके भद्रा नाम की भार्या थी। उसके धनपाल, धनदेव, धनगोप और धनरचित नाम के चार पुत्र थे। इनकी भार्याओं के नाम क्रमशः उज्झिका, भोगवती, रतिका और रोहिणी था। धन्ना सार्थवाह ने अपनी पुत्रवधुओं की बुद्धि की परीक्षा करने के लिए सव कुटुम्बी परुपों के सामने प्रत्येक को पाँच पाँच शालिकण (छिलके सहित चावल) दिये। उनको लेकर ज्येष्ठ पुत्रवधू ने तो फेंक दिया, दूसरी ने आदरपूर्वक खा लिया, तीसरी ने बड़ी हिफाजत के साथ अपने जेवरों की पेटी में रख दिया, चौथी ने
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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