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________________ 438 भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला * ~. . . . . . . . . उसमें दो कछुए रहते थे। उस द्रह के पास ही एक मालुफाकच्छ था। वहॉ दोषपी शगान (सियालिए) रहते थे। एक दिन उन दोनों ने उन छुयों को देखा। शृगालों को देखते ही दोनों कछुओं ने अपने शरीर के सब अङ्गों को संशोच लिया जिससे वे शगाल उनका कुछ भी नुकसान नहीं कर सके किन्तु थोड़े समय बाद ही उनमें से एक कछुए ने उन शगालों को दर गए हुए समझकर धीर धीर अपनी गर्दन और पर बाहर निकाले / उसके पैरों को बाहर निकले हुए देख फर बे पापी शगाल शीघ्रतापूर्वक वहाँ पाए और उस कछुए के शरीर के अगों को छेद दाला और उसे जीवन रहित कर डाला। दूसरा फछुआ, जिसने अपने अङ्ग गुप्त रखे और बाहर नहीं निकाले, पापी शृगाल उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सके और वह कछुआ उस दर में मानन्दपूर्वक रहने लगा। इस दृष्टान्स का उपनय घटाते हुए शास्त्रकार ने बतलाया कि दो मछुओं के समानदोसाधु समझने चाहिएं। चार पैर और ग्रीवा फे समान पाँच इन्द्रियों है। बाहर निकालने के समान शब्दादि विषय हैं। उनमे प्रवृत्ति करना राग, द्वेप रूपी दो शगाल हैं। इन दोनों के वश में होने से संयम का घात हो जाता है। जो साधु इन्द्रियों के विषयों में प्रवृत्त नहीं होता वह दूसरे कछुए की तरह द्रह सुख के समान मोक्ष सुरस को माप्त करता है और इन्द्रिय मुख में लोलुप साधु संसार सागर में परिभ्रमण करता हुआ अनन्त दुःरनों को भोगता है। इसलिए साधु को इन्द्रियों के हरवों में तथा शब्दादि विषयों में लोलुप नहीं होना चाहिए। (5) शैलक राजर्षि की कथा पाँचवाँ शैलक ज्ञात अध्ययन-यदि फिसी कारण से कोई साधु इन्द्रियों के वश में पड़ कर संयम में शिथिल पड़ जाय परन्तु फिर
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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