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________________ 43. श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला wrrrrr ~ गर्जता हुआ मेघ हो,छोटी छोटी बूंदें पड़ रही हों,सर्वत्र हरियाली हो, मोर नाच रहे हों आदि सारी बातें वर्षाऋतु की हों। ऐसे समय में वनक्रीड़ा करने वाली माताएं धन्य हैं। यदि मुझे भी ऐसा योग मिले तो वैभार पर्वत के समीप क्रीड़ा करती हुई में अपना दोहद पूर्ण करूँ। __ धारिणी रानी की इच्छा पूरी न होने से वह प्रतिदिन दुर्बल होने लगी। दासियों ने जाकर राजा को इस बात की सूचना दी। राजा ने रानी से पूछा-प्रिये ! तुम्हारे दुर्बल होने का क्या कारण है और तुम इस प्रकार वार्तध्यान क्यों कर रही हो? तव रानीने अपने दोहद की बात कही / राजा ने कहा-मैं ऐसा प्रयत्न करूँगा जिससे तुम्हारी इच्छा शीघ्र ही पूर्ण होगी / इस प्रकार रानी को आश्वासन देकर राजा वापिस अपने माल में चला पाया / रानी के दोहद को पूर्ण करने का वह उपाय सोचने लगा किन्तु उसे कोई उपाय न मिला / इससे राजा मार्तध्यान करने लगा। इसी समय अभयकुमार अपने पिता के पादवन्दन करने के लिए वहाँ आया। अभयकुमार के पछने पर राजा ने उसे अपनी चिन्ता का कारण बता दिया / अभयकुमार ने कहा-पिताजी! भाप चिन्ता मत कीजिये / में शीघ्र ही ऐसा प्रयत्न करूँगा जिससे मेरी लघु माता का दोहद शीघ्र ही पूरा होगा। अपने स्थान पर आकर अभयकुमार ने विचार किया कि अकाल मेघ फा दोरला देवता की सहायता के बिना पूरा नहीं हो सकता। ऐसा विचार कर अभयकुमार पौषधशाला में भाया। अहम तप (तीन उपवास) स्वीकार करके अपने पर्वभव के मित्र देव का स्मरण करता हुआ वह समय विताने लगा। तीसरे दिन अभयकुमार का पूर्व मित्र सौधर्म फल्पवासी एक देव उसके सामने प्रकट हुआ। अभयकुमार ने उसके सामने अपनी इच्छा प्रकट की।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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