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________________ 416 भी सेठिया जैन ग्रन्माला पूछने पर दसग मार्ग बता कर असली मार्ग को छिपा लेना। (7) शय्या-- चोर को ठहरने का स्थान देना। (8) पदभङ्ग- जिस मार्ग से चोर गया है उस मार्ग पर पश वगैरह ले जाकर चोर के पदचिह्नों को मिटा देना। (8) विश्राम-अपने घर में विश्राम करने की अनुमति देना। (10) पादपतन-प्रणाम आदि के द्वारा चोर को सन्मान देना। (11) आसन- चोर को आसन या विस्तर देना। (12) गोपन- चोर को छिपा कर रखना। (13) खण्ड खादन-चोर को मीठा और स्वादिष्ठ भोजन देना। (14) माहराजिक-चोर को जिस वस्तु की आवश्यकता हो उसे गुप्त रूप से उसके पास पहुँचाना। (15) पायदान- कहीं बाहर से आए हुए चोर को थकावट उतारने के लिए पानी या तेल भादि देना। (१६)चोर को रसोई बनाने के लिए भाग देना। (17) पीने के लिए ठण्डा पानी देना / (18) चोर के द्वारा लाए हुए पशु आदि को बाँधने के लिए रस्सी देना। (प्रश्नव्याकरगा प्रधर्मद्वार 3, टीका) 867- क्षुल्लक निर्ग्रन्थीय अध्ययन की अठारह गाथाएं संसार में जितने भी अविद्या प्रधान पुरुष हैं,अर्थात् मिथ्यात्व से जिनका ज्ञान कुत्सित है वे सभी दुःख भागी हैं / अपने भले बुरे के विवेक से शुन्य वे पुरुष इस अनन्त संसार में भनेक बार दरिद्रतादि दुःखों से दुखी होते हैं। (२)स्त्रीमादि के सम्बन्ध श्रात्मा को परवश बना देते हैं इस लिए ये पाश रूप हैं। ये तीन मोह को उत्पन्न कर आत्मा की ज्ञान
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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