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________________ . श्री जैन सिदान्त बोल सग्रह, पाचवा माग ४०७ - - rrrrrrrrrr (५) जड़- जड़ तीन प्रकार का होता है- भाषाजड़, शरीर अड़ और करणजड़। (क) भाषाजड के तीन भेद हैं- जलमूफ, मन्मनमुफ और एलक मूक । जो व्यक्ति पानी में डूबे हुए के समान केपला बुढबुड करता है कुछ भी स्पष्ट नहीं कह सकता उसे जलमूक कहते हैं। बोलते समय जिसके मुँह से कोई शब्द स्पष्ट न निकले,केवल अधूरे और अस्पष्ट शब्द निकलते रहें उसे मन्मनमूक कहते हैं । जो व्यक्ति भेड़ या बकरी के समान शब्द करता है उसे एलफमूक कहते हैं। ज्ञान ग्रहण में असमर्थ होने के कारण भाषाजड़ दीक्षा के योग्य नहीं होता। (ख) शरीर जड़- जो व्यक्ति बहुत मोटा होने के कारण विहार गोचरी, वन्दना आदि करने में असमर्थ है उसे शरीरजड़ कहते हैं। ___ (ग) करणजड़- जो व्यक्ति समिति, गुप्ति, प्रतिक्रमण, प्रत्युपेक्षण, पडिलेहना मादि साधु के लिए आवश्यक क्रियामों को नहीं समझ सकता या कर सकता वह करणजह (क्रियाजद) है। तीनों प्रकार के जड दीक्षा के लिए योग्य नहीं होते। (६)व्याधित-किसी बड़े रोग वाला व्यक्ति दीक्षा के योग्य नहीं होता। (७) स्तेन- खात खनना, मार्ग में चलते हुए को लूटना मादि किसी प्रकार से चोरी करने वाला व्यक्ति दीक्षा के योग्य नहीं होता। उसके कारण संघ की निन्दा तथा अपमान होता है। (८) राजापकारी- राजा, राजपरिवार,राज्य के अधिकारी या राज्य की व्यवस्था का विरोध करने वाला दीक्षा के योग्य नहीं होता। उसे दीक्षा देने से राज्य की ओर से सभी साधुओं पर रोष होने का भय रहता है। (8) उन्मत्त- यक्ष आदि के भावेश या मोह के सरल उदय
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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