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________________ ४०० श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला तथा सम्यग्दृष्टि साधु | गति एक की- संख्यात वर्ष का कर्मभूमि मनुष्य । (१३) पाँच अनुत्तर विमान में दो की आगति - ऋद्धि प्राप्त श्रममादी, अमृद्धिप्राप्त अप्रमादी । गति एक फी - संख्यात काल का कर्मभूमि मनुष्य । (१४) पृथ्वीकाय, अकाय और वनस्पतिकाय में चोहत्तर की आगति - बयालीस प्रकार के तिर्यञ्च (पृथ्वी काय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय और प्रत्येक वनस्पति काय में प्रत्येक के चार भेदसूक्ष्म, वादर, पर्याप्त और अपर्याप्त। इस प्रकार एकेन्द्रिय के बीस भेद | विकलेन्द्रिय के छः- बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय के पर्याप्त और अपर्याप्त । पञ्चेन्द्रिय के बीस- जलचर, स्थलचर, खेचर, उरः परिसर्प और भुजपरिसर्प में प्रत्येक के संज्ञी, असंज्ञी, पर्याप्त और अपर्याप्त ) मनुष्य के तीन भेद (सङ्गी मनुष्य का पर्याप्त, अपर्याप्त और असी का अपर्याप्त ) दस भवनपति, भाठ वाणव्यन्तर, पाँच ज्योतिषी, पहला देवलोक, दूसरा देवलोक । इस प्रकार कुल मिलाकर चोहत्तर हो जाते हैं । 1 गति उनचास में- ४६ तिर्यञ्च और तीन मनुष्य । (१५) काय और वायुकाय में आगति ४६ की ४६ तिर्यञ्च और तीन मनुष्य । गति छचालीस की - तिर्यञ्च के छयालीस भेद | (१६) तीन विकलेन्द्रिय में आगति और गति दोनों उनचास फी - ४६ तिर्यञ्च और ३ मनुष्य । ( १७ ) पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च में आगति सतासी की- उनचास ऊपर लिखे अनुसार, इकतीस प्रकार के देवता ( दस भवनपति, याठ वाणव्यन्तर, पाँच ज्योतिपी और पहले से लेकर आठवें तक माठ देवलोफ) और सात नरक |
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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