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________________ ~A DAN का मार्ग बता दिया । पास वाले नगर में आकर पद्मावती साध्वियों के उपाश्रय में चली गई । वन्दना नमस्कार करके उनके पास बैठ गई । साध्वियों ने उससे पूछा- वहिन तुम कौन हो ? कहाँ से आई हो ? पद्मावती ने उत्तर दिया- मैं एक रास्ता भूली हुई भबला हूँ । कष्ट और आपत्तियों से छुटकारा पाने के लिए आपकी शरण में आई हूँ | पद्मावती ने अपना वास्तविक परिचय देना ठीक न समझा । साध्वियों ने उसे दुखी देख कर उपदेश देना शुरू कियाबहिन ! यह संसार असार है। जो वस्तु पहले सुखमय मालूम पड़ती है नही बाद में दुःखमय हो जाती है। संसार में मालूम पड़ने वाले सुख वास्तविक नहीं हैं। वे नश्वर हैं। क्षणभंगुर हैं। जो कल राजा था वही आज दर दर का भिखारी बना हुआ है। जिस घर में सुबह के समय राग रंग दिखाई देते हैं, शाम को वहीं रुदन सुनाई पड़ता है । यह सब कर्मों की विडम्बना है। संसार की माया है। इसमें फंसा हुआ व्यक्ति सदा दुःख प्राप्त करता है। यदि तुम्हें सम्पूर्ण और शाश्वत सुख प्राप्त करने की इच्छा हो तो संसार का मोह छोड़ दो। संसार के झगड़ों को छोड़ कर मात्मचिन्तन में लीन हो जाओ । / पद्मावती पर उपदेश का गहरा असर पड़ा। संसार के सारे संबन्ध उसे निःसार मालूम पड़ने लगे। उसने दीक्षा लेने का निश्चय कर लिया । साध्वियों ने चतुर्विध संघ की भाज्ञा लेकर पद्मावती को दीक्षा दे दी। जिस व्यक्ति का कोई इष्ट सम्बन्धी पास में न हो या जिसके साथ किसी की जान पहिचान न हो उसे दीक्षा देने के लिए संघ की आज्ञा लेना आवश्यक होता है । पद्मावती आत्मचिन्तन तथा धर्मध्यान में लीन रहने लगी । कुछ दिनों बाद साध्वियों को उसके गर्भ का पता लगा। दीक्षा
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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