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________________ श्रीसेठिया बैन ग्रन्थमाला men man man वह जिधर दौड़ रहा था उसी मार्ग में कुछ दूरी पर एक वट का वृक्ष था। राजा ने उसे देख कर रानी से कहा-देखो हाथी उस वृक्ष के नीचे से निकलेगा। जब वह उसके नीचे पहुँचे तुम वृक्ष की दाल पकड़ लेना। मैं भी ऐसा ही करूँगा। ऐसा करने पर हम दोनों इस आपत्ति से पच जाएंगे। हाथी दौड़ता प्रभा वटवृक्ष के नीचे आया । राजा ने शीघ्रता से एफ डाल को पकड़ लिया। गर्भवती होने के कारण रानी ऐसा न कर सकी। वह हाथी पर रह गई। राजा वृक्ष से उतर कर अपनी राजधानी में चला गया। ___ हाथी दौड़ता दौड़ता घने वन में पहुंचा। उसे प्यास लगाई। पानी पीने के लिए वह एफ जलाशय में उतरा। उस समय हाथी का होदा एक वृक्ष की शाखा के साथ लग गया। रानी उसे पकड़ कर नीचे उतर आई। हाथी ने पानी पीकर फिर दौड़नाशुरू किया। पद्मावती नीचे बैठ गई। उस समय वह अकेली और असहाय थी। कुछ समय पहले जिसकी आज्ञा प्राप्त करने के लिए हजारों व्यक्ति उत्सक रहते थे. अब उसकी करुण पकार को सनने वाला कोई नथा। चारों ओर से सिंह,व्याघ्र वगैरह जंगली प्राणियों के भयङ्कर शब्द सुनाई दे रहे थे। उस निर्जन वन में एक अबला के लिए अपने प्राणों को बचाना बहत कठिन था। पद्मावती ने अपने जीवन को सन्देह में पड़ा जान फर सागारी संथारा कर लिया।मपने पापों के लिए यह आलोयणा करने लगी - यदि मैंने इस भव या परभव में पृथ्वी, पानी, अग्नि,वायु या बनस्पति काय के जीवों की हिंसा मन, वचन या काया से स्वयं की हो, दूसरे के द्वारा कराई हो, या करने वाले को भला समझा हो तो मेरा यह आरम्भ सम्वन्धी पाप मिथ्या अर्थात् निष्फल होवे । मैं ऐसे कार्य को बुरा मानती हूँ तथा जिन जीवों को मेरे
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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