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________________ लगा ? कृपा करके कहिये। उपस्थित जनसमाज के सामने मुनिराज ने कहनाशुरू किया। भन्यो। मपनी आत्मा का हित चाहने वाले पुरुषों को झूठ वचन, दोपारोपण, निन्दा और किसी की गुप्त बात को प्रकट करना इत्यादि अवगुणों का सर्वथा त्याग करना चाहिये। किसी निर्दोष व्यक्ति पर झूठाकलंक चढ़ाना तो भतिनिन्दनीय कार्य है। ऐसा व्यक्ति लोक में निन्दा का पात्र होता है और परलोक में अनेक कष्ट भोगता है । जो व्यक्ति शुद्ध संयम पालने वाले मुनिराज पर झूठा कलंक लगाता है उस पर सती सीता की तरह झूठा कलंक आता है । सीता के पूर्वभव की कथा इस प्रकार है भरतक्षेत्र में मृणालिनी नाम की नगरी थी। उसमें श्रीभूति नाम का एक प्रतिष्ठित पुरोहित रहता था। उसकी स्त्री का नाम सरस्वती था। उसके एक पुत्री थी जिसका नाम वेगवती था। ___ एक दिन अपनी सखियों के साथ खेलती हुई वेगवती नगरी से कुछ दूर जंगल की भोर निकल गई। आगे जाकर उसने देखा कि एक कृशकाय तपस्वी मुनिराज काउसग्ग करके ध्यान में खड़े हैं। नगरी में इसफी खबर मिलने से सैकड़ों नर नारी उनके दर्शन करने के लिए आरहे हैं । यह देोव कर वेगवती के हृदय में मुनि पर पूर्वभव का वैर जागृत हो गया।वह दर्शनार्थ पाने वाले लोगों से कहने लगी- संसार को छोड़ कर साधु का वेष पहनने वाले भी कितने कपटी और ढोंगी होते हैं। भोले प्राणियों को ठगने के लिये वे क्या क्या दम्भ रचते हैं। पवित्र कर्मकाण्डी ब्राह्मणों की सेवा को छोड़ कर लोग भी ऐसे पाखण्डियों की ही सेवा करते हैं। मैंने अभी देखा था कि यह साधु एकान्त में एक स्त्री के साथ क्रीड़ा कर रहा था। इससे ध्यानस्थ मुनि काचित्त संतप्त हो उठा। चे विचारने लगे कि में निर्दोष हूँ इसलिए मुझे तो किसी प्रकार
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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