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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाचवां भाग ३३३ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm अपना वृत्तान्त इनसे कहो। ये अवश्य तुम्हारा दुःख दूर करेंगे। मन्त्री के कथन पर विश्वास करके सीता ने अपना सारा वृत्तान्त कह सुनाया। राजा कहने लगा- हे आर्ये ! एक धर्म वाले परस्पर पन्धु होते हैं । इसलिये तुम मेरी धर्म वहिन हो। तुम मुझे अपना भाई समझ कर मेरे घर को पावन करो और धर्म ध्यान करती हुई सरख पूर्वक अपना समय विताभो । वज्रजंघ का शुद्ध हृदय जान कर सीता ने पुण्डरीफपुर में जाना स्वीकार कर लिया । राजा वनजंघ सीता को पालकी में पैठा कर अपने नगर में ले पाया । सीता विधिवत् अपने गर्भ का पालन करने लगी। समय पूरा होने पर सीता ने एक पुत्र युगल को जन्म दिया। राजा वनजंघ ने दोनों पुत्रों का जन्मोत्सव मनाया। उनमें से एक का नाम लव और दूसरे का नाम कुश रखा। दोनों राजकुमार आनन्दपूर्वक बढ़ने लगे। योग्य वय होने पर उन दोनों को शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा दिलाई गई। यौषन अवस्था प्राप्त होने पर राजा वज्रजंघ ने दूसरी बत्तीस राजकन्याओं का और अपनी पुत्री शशिकला का विवाह लव के साथ कर दिया । कुश के लिए राजा वज्रजंघ ने पृथ्वीपर के राजा पृथुराज से उसकी कन्या की मांगणी की फिन्तु लव, कुश के वंश को अज्ञात बसा कर पृथुराज ने अपनी कन्या देने से इन्कार कर दिया। राजा वज्रजंघ ने इसे अपना अपमान समझा । राजा वज्रजंघ ने लव कुश को साथ लेकर पृथुराज के नगर पर चढ़ाई कर दी। उसकी प्रबल सेना के सामने पृथराज की सेना न टिक सकी। परास्त होकर वह मैदान छोड़ कर भाग गई । पृथुराज भी अपने प्राण बचाने के लिए भागने लगा किन्तु लव, कुश ने उसे चारों ओर से घेर लिया। कुश ने कहा- राजन् ! आप सरीखे उत्तम कुल वंश वाले हम जैसे हीन कुल वंश वालों के सामने से अपने प्राण बचा कर भागते हुए
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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