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________________ भीमग्विा बैन प्रन्पमाला ~ ~ ~~~~~~~~ ~ ~~~ ~~ नाम की तीन रानियाँ और थीं। सीता को सगर्भा जान कर उनके यन में ईर्ष्या उत्पन्न हुई । वे उस पर कोई कलंक चढ़ाना चाहती थीं अतः रातदिन उसका छिद्र ढूँढने लगीं। एकदिन कपटपूर्वक उन्होंने सीता से पूछा कि सरिख ! तुम लंका में बहुत समय तक रही थी और गवण को भी देखा था। हमें भी बताओ फिरावण का रूप कैसा था सीता की प्रकृति सरल थी। उसने कहा-बहिनो! मैंने रावण का रूप नहीं देखा किन्तु कभीकभी मुझे डराने धमकाने के लिए वह अशोक वाटिका में आया करता था इसलिए उसके केरल पैर मैंने देखे है। सौतों ने कहा- अच्छा उसके पैर ही चित्रित करके हमें दिखाभो । उन्हें देखने की हमें बहुत इच्छा हो रही है। सरल प्रकृति वाली सीता उनके कपटभाव को न जान सकी। सरल भाव से उसने रावण के दोनों पैर चित्रित कर दिये । सौतों ने उन्हें अपने पास रख लिया। अब वे अपनी इच्छा को पूरी करने का उचित अवसर देखने लगीं । एक समय राम अकेले बैठे हुए थे। तब सब सौत मिल कर उनके पास गई। चित्र दिखा कर वे कहने लगीं- स्वामिन् ! जिस सीता को श्राप पतिव्रता और सती करते हैं उसके चरित्र पर जरा गौर कीजिए । वह अब भी रावण की ही इच्छा करती है। वह नित्यप्रति इन चरणों के दर्शन करती है। सौतों की बात सुन कर राम विचार में पड़ गये किन्तु फिसी अनबन के फारण सौतों ने यह बात बनाई होगी यह सोच कर राम ने उनकी बातों की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। अपनाप्रयास असफल होसे देख मौतों की ईर्ष्या और भी बढ़ गई। उन्होंने अपनी दासियों द्वारा लोगों में धीरे धीरे यह वास फैलानी शुरू की। इसमे लोग भी भव सीता को सकलंकसमझने लगे। एक दिन रात्रि के समय राम सादावेप पहन फर लोगों का सम्व दुःख जानने के लिये नगर में निकले। घूमते हुए वे एक धोवी के घर
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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