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________________ जेसिया बन माग २०७ भीता पो अपनी पहिन गंगा पर उसने मे मरणाम किया जन्म से है। चन्द्र को भी हुए अपने भाई की मीना भी अत्यन्त प्रसन्नता ने दून भेजकर जन भर की रानी विदेश बुलाया और जमने ही जिसका होगया था वह यह भागष्ट तुम्हारा है दिमाग चार चौर भगठन को 13 मनाया यह शन पर सपना पुत्र मकान से लगा लिया। अपने वाविक माता शिवापोपहिचान कर भाल को भीगना भक्ति नाम विनचन्द्रगतिको उपोगया। भामटन को निराकर घराने दारकर ली। राजा ने भी निगम में अपने के विषय में 9-11 अपने पूर्वभवका तान्न सुन कर गंजा दशव्य को भी बैंगन उत्पन्न होगया ने भी अपने पुत्र रामफोराज्य ने का नियय कर लिया। नमक की बारी होने बगी। रानी कैकयी की दासीन नहीं होगा | उगने साया और गंग्राम के द्वारा दिये गये दर पांगने के ये रत किया। दामी की बानों में आकर की ने राजा मेयर गोगे मेरे पुत्र भरत को गले -- की चौदह वर्ष का वनवास अपने वचन का पालन करने के लिये राजा ने उसके दोनों स्वीकार किये। पिता की माता से राम वन जाने के लिये हुए | जब यह बात गीता को मालूम हुई तो वह भी राम के साथ वन जाने को व्या हो गई। रानी कौशल्या के पास जाकर बन जाने की अनुमति यागने लगी। कौशल्या ने कहा- पुत्रि ! राम पिता की भाषा से
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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