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________________ ३१८ श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला NNNN लाया-चैत्र शुक्ला द्वादशी के दिन इस सुरंग के द्वारा आप यहाँ भाजाइएगा। सुज्येष्ठा को भी इस बात की खबर कर दी कि श्रेणिक राजा द्वादशी के दिन वैशाली में पाएंगे। उसी दिन श्रेणिक आया। सज्येष्ठा उसके साथ जाने के लिए तैयार होने लगी। इतने में उसकी छोटी बहिन चेलणा ने कहामैं भी तुमारे साथ चलॅगी और श्रेणिक के साथ विनाइकरूँगी। दोनों वहिने तैयार होकर मुरंग के मुंह पर भाई । यहाँ पाकर मुज्येष्ठा बोली- अपना रनों का पिटारा भूल आई हूँ। मैं उसे लेने जाती हूँ। मेरे आने तक तुम यहीं ठहरना । यह कह कर वह रनकरण्ड लाने वापिस चली गई। इतने में श्रेणिक वहाँधा पहुंचा। वह सुलसा के बत्तीस पुत्रों के साथ वहाँ पाया था। सुरंग के द्वार पर खड़ी हुई चेलणा को सुज्येष्ठा समझ कर श्रेणिक ने उसे रथ पर विठा लिया और शीघ्रता से राजगृही की भोर मस्थान कर दिया। ___ इतने में सुज्येष्ठा भाई । सुरंग के द्वार पर किसी को न देख कर वह समझ गई कि चेलणा अकेली चली गई है। उसने चिल्लाना शुरू किया । चेड़ा महाराज को रखबर पहुँची। पुत्री का हरण हुआ जान कर उन्होंने पीछा किया। सुलसा के पुत्रों ने चेड़ा राजा की सेना को मार्गही में रोक लिया। युद्ध शुरू हुमा । उस में सुलसा का एक पुत्र मारा गया। एक की मृत्यु से बाकी बचे हुए इकतीस पक्षों की भी मृत्यु हो गई। श्रेणिक चेलणा को लेकर राजगृही के समीप पहुँचा। राजाने उसे सुज्येष्ठा के नाम से पुलाया तो चेलणा ने कहा- मैं मृज्येष्ठा नहीं हूँ। मैं तो उसकी छोटी महिन चेलणा है। राजा को अपनी भूल का पता लगा। बड़े समारोह के साथ श्रेणिक और चेलणा का विवाह हो गया। . ___ सुलसा को अपने पुत्रों की मृत्यु का समाचार सन फर बड़ा दुःख हुआ। वह विलाप फरने लगी। एक साथ बर्ता
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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