SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 355
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल समह, पाचवां भाग wwmmmmmmmmmmmmmmmm साधुओं का रूप बना कर वह मलसा के घर गया। साधुओं को देख कर सुलसा बहुत कर्षित हुई। मन में सोचने लगी- मेराअहोभाग्य है कि निर्ग्रन्थ साधु विक्षा के लिए मेरे घर पधारे हैं। साधुओं को वन्दना नमस्कार करने के बाद सुलसा ने हाथ जोड़ फर विनति की- मुनिराज ! आप के पधारने से मेरा घर पवित्र हुआ है। आप को जिस वस्तु की चाहना हो फरमाइए। पनि ने उत्तर दिया- तुम्हारे घर में लक्षपाक तेल है। उग्र विहार के कारण बहुत से साधु ग्लान हो गए हैं। उनके उपचार के लिए इसकी आवश्यकता है। _ 'लासी हूँ' कह कर हर्षित होती हुई सुलसा तेल लाने के लिए अन्दर गई,जैसे ही वह ऊपर रखे तेल के पाजल को उतारने लगी कि देवमाया के प्रभाव से वह हाथ से फिसलकर नीचे गिर पड़ा। इसी प्रकार दूसरा और तीसरा भाजन भी नीचे गिर कर फूट गया। ___ इतना नुक्सान होने पर भी सुलसा के मन में बिल्कुल खेद नहीं हुआ । बाहर आकर उसने सारा हाल साधुजी से कहा। साधुवेषधारी देव प्रसन्न हो गया। उसने अपने असली रूप में प्रकट होकर सुलसा से कहा- शक्रन्द्र ने जैसी तुम्हारी प्रशंसा की थी, वास्तव में तुम वैसी ही हो। मैंने तुम्हारी परीक्षा के लिए साधु का वेष बनाया था। मैं तुम पर प्रसन्न हूँ। जो तुम्हारी इच्छा हो मांगो। सलसाने उत्तर दिया- पाप मेरे हृदय की बात जानते ही हैं, फिर मुझे कहने की क्या आवश्यकता है ? देव ने ज्ञान द्वारा उसके पुत्रप्राप्ति रूप मनोरथ को जान कर सलला को बत्तीस गोलियाँ दी और कहा- एक एक गोली खाती जाना। इनके प्रभाव से तुम्हें बत्तीस पुत्रों की प्राप्ति होगी। फिर कभी जब आवश्यकता पड़े गेरा स्मरण करना, मैं उसी समय उपस्थित हो जाऊँगा । यह कह कर देव अन्तधोन हो गया।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy