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________________ भी जैन सिदान्त बोन संग्रह, पांचवां भाग २८३ में आई।दासी बाएं हाथ में एफदर्पण लिये हुई थी। उसमें राजाओं का प्रतिविम्व पड़ रहा था। उनके नाम, स्थान तथा गुणों का परिचय देती हुई वह द्रौपदी को साथ लेकर आगे बढ़ रही थी। धीरे धीरे वह जहाँपाँच पाण्डव वैठे हुए थे वहाँ आ पहुँची। पूर्व जन्म में किये हुए नियाणे से प्रेरित होकर उसने पाँचों पाण्डवों के गले में वरमाला डाल दी। 'राजकुमारी द्रौपदी ने श्रेष्ठ वरण किया। एंसा का कर सब राजाओं ने उसका अनुमोदन किया। इसके पश्चात् राजा द्रपद ने अपनी पुत्री का विवाह पाँचों पाण्डवों के साथ कर दिया। आठ करोड़ सोनयों का प्रीतिदान दिया। विपुल अशन,पान तथावस्त्र भाभरण आदि से पाण्डवों का उचित सत्कार कर उन्हें विदा किया। (ज्ञाताधर्म क्याग सोलहवा अध्ययन ) द्रौपदी का विवाह पाँचों पाण्डवों के साथ होगया।वारी वारी से वह प्रत्येक की पत्नी रहने लगी। जिस दिन जिसकी वारी होती उस दिन उसे पति मान कर वाफी के साथ जेठ या देवर सरीखा वर्ताव रखती। ___ एक वार द्रौपदीशरीर परिमाण दर्पण में अपने शरीर को वार बार देख रही थी। इतने में वहाँनारद ऋपि आए । द्रौपदी दर्पण देखने में लीन थी, इस लिए उसने नारदजी को नहीं देखा।नाग्द कुपित होकर धातकीखण्ड द्वीप की अमरकंका नगरी में पहुँचे। वहाँपद्मोत्तर राजा राज्य करता था। नारदजी उसी के पास गए। राजाने विनय पूर्वक उनका स्वागत किया और पूछा- महाराज !आप सब जगह घूमते रहते हैं कोई नई वात बताइए। नारदजी ने उत्तर दिया-मैं हस्तिनापुर गया था वहाँ पाण्डवों के भन्तःपुर में द्रौपदी को देखा। तुम्हारे अन्तःपुर में ऐसी एक भीखी नहीं है। पद्मोत्तर राजा ने द्रौपदी को प्राप्त करने के लिए एक देव की आराधना की। देव द्रौपदी को उठा कर वहाँ ले आया।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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