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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवा भाग २८१ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm orr rrrrror पास दीक्षा ले ली । दीक्षा लेकर अनेक प्रकार की कठोर तपस्या करती हुई विचरने लगी। एक समय वह गोपालिका आर्या के पास आकर इस प्रकार कहने लगी-पूज्ये आपकी आज्ञा हो तो मैं सुभूमिभाग उद्यान के आसपास वेले बेले पारना करती हुई सूर्य की आतापना लेकर विचरना चाहती हूँ। गोपालिका आर्या ने कहा-साध्वियों को ग्राम यावत् सन्निवेश के बाहर सूर्य की आतापना लेना नहीं कल्पता। अन्य साध्वियों के साथ रह कर उपाश्रय के अन्दर ही अपने शरीर को कपड़े से ढक कर सूर्य की आतापना लेना कन्पता है। सुकुमालिका ने अपनी गुरुपानी की बात न मानी। वह सुभूमि. भाग उद्यान के कुछ दूर आतापना लेने लगी। एक सयय देवदत्ता नाम की एक वेश्या पाँच पुरुषों के साथ क्रीड़ा करने के लिये सुभूमिभाग उद्यान में आई। उसे देख कर सुकुमालिका के हृदय में विचार आया कि यह स्त्रीभाग्यशालिनी है जिससे यह पॉच पुरुषों को वल्लभ एवं प्रिय है। यदि मेरे त्याग, तप एवं ब्रह्मचर्य का कुछ भी फल हो तो आगामी भव में मैं भी इसी प्रकार पॉच पुरुपों को वल्लभ एवं प्रिय वनें। इस प्रकार सकुमालिका ने नियाणा कर लिया। कुछ समय पश्चात् वह गोपालिका आर्या के पास वापिस चली आई। अब वह शरीर बकुशा होगई अर्थात् शरीर की शुश्रूषा करने लग गई। अपने शरीर के प्रत्येक भाग कोधोने लगी तथा स्वाध्याय, शय्या के स्थान को भी जल से छिड़कने लगी। गोपालिका आर्या ने उसे ऐसा करने से मना किया किन्तु सुकुमालिकाने उसकी बात न मानी और वह ऐसा ही करती हुई रहने लगी। दूसरीसाध्वियों को उसका यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा। उन्होंने उसका आदर सत्कार करना छोड़ दिया। इससे गोपालिका आर्या को छोड़ कर मुकुमालिकाअलग उपाश्रय में अकेली रहने लगी। अवबह पासस्था,
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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