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________________ भोजन सिदान्त बोल संग्रह, पांच माग २७६ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm से निकाल देते । नागश्री बहुत दुखी हो गई। हाथ में मिट्टी का पात्र लेकर वह घर घर भीख मांगने लगी। थोड़े दिनों बाद उसके शरीर में श्वास, कास, योनिशूल, कोढ आदि सोलह रोग उत्पन हुए। मर कर छठी नारकी में पाईस सागरोपम की स्थिति वाले नारकियों में नैरयिक रूप से उत्पन्न हुई। वहाँ से निकल कर मत्स्य, सातवीं नरक, मत्स्य,सातवीं नरक,मत्स्य,छठी नरक, उरग(सर्प), इस प्रकार वीच में तिर्यञ्च का भव करती हुई प्रत्येक नरक में दो दो बार उत्पन्न हुई। फिर पृथ्वीकाय, अप्काय आदि एकेन्द्रिय जीवों में तथा द्वीन्द्रियादि जीवों में अनेक वार उत्पन्न हुई। इस प्रकार नरक और तिर्यञ्च के अनेक भव करता हुआ नागश्री का जीव चम्पा नगर निवासीसागरदत्त सार्थवाह कीभार्या भद्रा की कुत्ति से पुत्री रूप में उत्पन्न हुआ। ___ जन्मोत्सव मना कर माता पिता ने पुत्री का नाम सुकुमालिका रखा । माता पिता की इकलौती सन्तान होने से वह उनको बहुत मिय थी। पांचधायों द्वारा उसका लालन पालन होने लगा।मुरक्षित वेल की तरह वह बढ़ने लगी। क्रमशः बाल्यावस्था को छोड़ कर वह यौवन वय को प्राप्त हुई । अव माता पिता को उसके योग्य वर खोजने की चिन्ता हुई। ___ चम्पा नगरी में जिनदत्त नाम का एक सार्थवाह रहता था । उस की स्त्री का नाम भद्रा और पुत्र का नाम सागर था। सागर बहुत रूपवान्था। विद्या और कला में प्रवीण होकर वह यौवन वय को प्राप्त हुआ। माता पिता उसके लिये योग्य कन्या की खोज करने लगे। ___ एक दिन जिनदत्त सागरदत्त के घर के नजदीक होकर जा रहा था। अपनी सखियों के साथ कनक कन्दुक(सुनहली गेंद) से खेलती हुई सुकुमालिका को उसने देखा । नौकरों द्वारा दरियाफ्त कराने पर उसे मालूम हुआ कि यह सागरदत्त की पुत्री सृकुमालिका है।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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