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________________ २७२ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला कैसी बातें कर रहे हैं ? स्थनेमि- साधु होने पर भी इस समय मुझे तुम्हारे सिवाय कुछ नहीं सूझ रहा है। तुम्हारे रूप पर आसक्त होकर मैं सारा ज्ञान, ध्यान भूल गया हूँ। राजीमती-आपको अपनी प्रतिज्ञाओं पर दृढ़ रहना चाहिए। क्या आप भूल गए कि आपने संयम अङ्गीकार करते समय । प्रतिज्ञाएं की थी ? रथनेमि-मुझे वे प्रतिज्ञाएं याद हैं,किन्तु यहाँ कौन देख रहा है ? राजीमती-जिसे दूसरा कोई न देखे क्या वह पाप नहीं होता? अपनी अन्तरात्मा से पूछिए। क्या छिप कर पाप करने वाला पतित नहीं माना जाता ? ___ मायावी होने के कारण वह तो खुल्लमखुल्ला पाप करने वाले से भी अधिक पातकी है। रथनेमि- अगर छिप कर ऐसा करना तुम्हें पसन्द नहीं है तो आओ हम दोनों विवाह करलें और संसार का आनन्द उठाएं । - वृद्धावस्था आने पर फिर दीक्षा ले लेंगे। राजीमती- आपने उस समय स्वयं लाए हुए पेय पदार्थ को क्यों नहीं पिया था ? स्थनेमि- वह तुम्हारा वमन किया हुआ था । राजीमती- यदि आप ही का वमन होता तो आप पीजाते ? रथनेमि-यह कैसे हो सकता है,क्या वमन को भी कोई पीता है? राजीमती-तो आप कामभोगों को छोड़ कर (उनका वमन करके) फिर स्वीकार करने के लिये कैसे तैयार हो रहे हैं ? __ स्थनेमि कुमार ! आप अन्धकवृष्णि के पौत्र, महाराजा समुद्र विजय के पुत्र, धर्मचक्रवर्ती तीर्थङ्कर भगवान् अरिष्टनेमि के भाई हैं। त्यागे हुए को फिर स्वीकार करने की इच्छा आपके लिये लज्जा
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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