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________________ बोल नं० ८७८ आचारांग तस्कन्ध १ ०९ उ० ४ की गाथाएं ८४७ आजीविक दर्शन में ३८० पृष्ठ आध्यात्मिक विकास ६८ ( २३ ) ८४७ आध्यात्मिक विकासक्रम ६३ ८४० आभ्यन्तर परिग्रह के ३३ चौदह भेद ८६८ श्रव आदि के भांगे १६८ ८६६ आहार के सोलह दोष ( उत्पादना) ८६५ आहार के सोलह दोष ( उद्गम ) उ ८६३ उत्तराध्ययन ग्यारहवें अध्ययन की सोलह गाथाएं अठारह गाथाएं ८६२ उत्तराध्ययन पन्द्रहवें १६४ ८५४ उत्तराध्ययन वीसवें १५५ ८९७ उत्तराध्ययन छठे अध्ययन की निर्मन्थाचार विषयक ४१६ १६१ 'सभिक्खु ' अध्ययन की सोलह गाथाएं १५२ बोल नं० अध्ययन की पन्द्रह गाथाएं ८६६ उत्पादना के सोलह दोष १३० पृष्ठ १६४ ९०० उत्क्षिप्तज्ञात (ज्ञातासूत्र का पहला अध्ययन ) ४२९ ९०० उदक ज्ञात (ज्ञातासूत्र का अध्ययन बारहवाँ ) ४५८ ८४७ उदय गुणस्थानो मे ९४ ८४७ उदीरणा गुणस्थानो मे ९८ ८६५ उद्गम के सोलह दोष १६१ उन्नीसवाँ बोल संग्रह ४२५ ८३३ उपकरण चौदह स्थविर कल्पी साधुओ के लिये २८ ८६३ उपमाएं सोलह बहुश्रुत साधु के लिए ८४७ उपशमक १५५ ८२ ८४ ८४७ उपशम श्रेणी ८४७ उपशान्त कषाय वीतराग छद्मस्थ गुणस्थान ८२ क ९०० कछुए का दृष्टान्त ८७१ फडजुम्मा आदि सोलह महायुग्म ४३७ १७२
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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