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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला केवलज्ञान होने पर वह उनके पास दीक्षा लेना चाहती थी । कुछ दिनों बाद वह अवसर उपस्थित हो गया जिसके लिए चन्दनवाला प्रतीक्षा कर रही थी । श्रमण भगवान् महावीर को केवलज्ञान उत्पन्न हो गया । संसार का कल्याण करने के लिए वे ग्रामानुग्राम विचरने लगे । चन्दनबाला को भी यह समाचार मिला। उसे इतना आनन्द हुआ जितना प्यासे चातक को वर्षा के आगमन पर होता है। शतानीक और मृगावती से माझा लेकर वह भगवान् के पास दीक्षा लेने के लिए चली । कौशाम्बी की जनता ने आँखों में आँसू भर कर उसे विदा दी । चन्दनवाला ने सभी को भगवान् के बताए हुए मार्ग पर चलने का उपदेश दिया । कौशाम्बी से रवाना होकर वह भगवान् के समवसरण में पहुँच गई। देशना के अन्त में उसने अपनी इच्छा प्रकट की। सांसारिक दुःखों से 'छुटकारा देने के लिए भगवान् से प्रार्थना की। २४६ भगवान् ने चन्दनबाला को दीक्षा दी। स्त्रियों में सर्व प्रथम दीक्षा लेने वाली चन्दनबाला थी। उसी से साध्वी रूप तीर्थ का प्रारम्भ हुआ था, इस लिए भगवान् ने उसे साध्वी संघ की नेत्री वनाया । यथासमय मृगावती ने भी दीक्षा ले ली। वह चन्दनवाला की शिष्या वनी । धीरे धीरे काली, महाकाली, सुकाली आदि रानियों ने भी चन्दनबाला के पास संयम अङ्गीकार कर लिया । छत्तीस हजार साध्वियों के संघ की मुख्या वन कर वह लोक कल्याण के लिए ग्रामानुग्राम विचरने लगी। उसके उपदेश से अनेक भव्य प्राणियों ने प्रतिबोध प्राप्त किया तथा श्रावक या साधु के व्रत को अंगीकार कर जन्म सफल किया । बहुत लोग मिथ्यात्व को छोड़ कर सत्य धर्म पर श्रद्धा करने लगे। एक बार श्रमण भगवान् महावीर विचरते हुए कौशाम्बी पधारे। चन्दनवाला का भी अपनी शिष्याओं के साथ वहीं आगमन हुआ ।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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