SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला wwimmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm एक साथ आते देख कर जनता जयनाद करने लगी। __ महल में पहुँच कर शतानीक ने दधिवाहन को ऊँचे सिंहासन पर बैठाया । प्रसन्न होती हुई चन्दनवाला पिता से मिलने आई। पास आकर उसने विनय पूर्वक प्रणाम किया। चन्दनबाला को देखकर दधिवाहन गद्गद् हो उठा। कंठ रुंध जाने से वह एक भीशब्द न बोल सका।साथ में उसे लज्जा भी हुई कि जिस वसुमती को वह असहाय अवस्था में छोड़ कर चला गया था उसने अपने चरित्र वल से सबको सुधार दिया। धारिणी के प्राण त्याग और चन्दनबाला की दृढ़ता के सामने वह अपने को तुच्छ मानने लगा। शतानीक को राज्य से घृणाहोगई थी, इसलिए उसने दधिगाहन से कहा- मैंने अबतक अन्यायपूर्ण राज्य किया है। न्याय से राज्य कैसे किया जाता है, यह मैं नहीं जानता, इस लिए श्राप चम्पा और कौशाम्बी दोनों राज्यों को सम्भालिए । मैं आपके नीचे रह कर प्रजा की सेवा करना सीलूँगा। दधिवाहन ने उत्तर दिया- न्यायपूर्ण शासन करने के लिए हृदय पवित्र होना चाहिए। भावना के पवित्र होने पर ढंग अपने श्राप पा जाता है। मैं वृद्ध हो गया हूँ इस लिए दोनों राज्य आप ही सम्भालिए। जिस राज्य के लिए घोर अत्याचार तथा महान् नरसंहार हुभा वही एक दूसरे पर इस प्रकार फैंका जा रहा था, जैसे दो खिलाड़ी परस्पर फन्दुक (गेंद) को फेंकते है। चन्दनवाला यह देख कर हर्पित हो रही थी कि धर्म की भावना किसमकार मनुष्य को राक्षस से देवता बना देती है। मन्त में चन्दनवाला के कहने पर यह निर्णय हुआ कि दोनों को अपना अपना राज्य वयं मम्भालना चाहिए। दोनों राज्यों का भार किसी एक पर न पड़ना चाहिए।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy