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________________ श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, पांचवां भाग २३३ को क्रोध आ गया। वह मला को डाटने लगा। - चन्दनवाला सेठजी को देखते ही सिंहासन से उतर गई। उन्हें मुला पर क्रुद्ध होते हुए देख कर कहने लगी- पिताजी ! इस में माताजी का कोई दोष नहीं है। प्रत्येक घटना अपने किए हुए का के अनुसार ही घटती है। हमें इनका उपकारमानना चाहिए,जिससे भगवान् महावीर का पारणा हमारे घर हो सका।इन्द्र आदि देवों के द्वारा मुझे मालूम पड़ा कि भगवान् के तेरह बातों का अभिग्रह था। वह अभिग्रह माताजी की कृपा से ही पूरा हुआ है। सेठ का क्रोधशान्त करके चन्दनवालादोनों के साथ सिंहासन पर बैठ गई। धीरे धीरे शहर में यह बात भी फैल गई कि जो लड़की उस दिन बाजार में विक रही थी, जिसने वेश्या के साथ जाना अस्वी कार किया था और अन्त में धनावह सेठ के हाथ विकी थी वह चम्पानगरी के राजा दधिवाहन और रानी धारिणी की कन्या है। उसी के हाथ से भगवान् महावीर का पारणा हुआ है। - चन्दनवाला को सेठ के पास छोड़ कर अपने घर लौटने के बाद रथी बहुत ही दुखी रहने लगा। उसे वे वीस लाख सोनये . बहुत बुरे लगते थे। उसकी स्त्री उसे विविध प्रकार से खुश करने का प्रयत्न करती किन्तु वे बातें उसे जले पर नमक के समान मालूम पड़ती। पास पड़ोस के लोग भी चन्दनबालाकी सदा प्रशंसा करते। इन सब बातों का रथी की स्त्री पर बहुत प्रभाव पड़ा। वह सोचने लगी कि चन्दनबाला मुझे ही क्यों बुरी लगती है। सारी दुनिया तो उसकी प्रशंसा करती है। उसे सभी बातों में अपना हीदोष दिखाई देने लगा। पति पर किया गया आक्षेप भी निराधार मालूम पड़ा। धीरे धीरे उसने वेश्या का सुधरना तथा दूसरी बातें भी सुनीं। उसे विश्वास हो गया कि सारा दोष मेरा ही है । मैंने चन्दनवाला के असली रूपको नहीं समझा। उसे बहुत पश्चात्ताप
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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