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________________ २३० श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला Anmornin~ बड़ा पापी हूँ, जिसके घर में तेरे समान सती स्त्री को ऐसा महान् कष्ट उठाना पड़ा। __ चन्दनबाला सेठ को धैर्य बंधाने और सान्त्वना देने लगी। उसने वार पार कहा- पिताजी इसमें आपका और माताजी का कुछ दोष नहीं है । यह तो मेरे पिछले किए हुए कर्मों का फल है। किए हुए कर्म तो भोगने ही पड़ते हैं। इसमें करने वाले के सिवाय और किसी का दोष नहीं होता। __ सेठजीशोकसागर में डूब रहे थे। उन पर चन्दनवाला की किसी बात का असर न हो रहा था। सेठजी का ध्यान किसी कार्य की ओर खींच कर उनका शोक दूर करने के उद्देश्य से चन्दनवाला ने कहा- पिताजी! मुझे भूख लगी है। कुछ खाने को दीजिए। मेरी यह प्रतिज्ञा है कि जो वस्तु सबसे पहले भापके हाथ में आवेगी उसी से पारणा करूँगी, इस लिए नई तैयार की हुई या वाहर से लाई हुई कोई वस्तु मैं स्वीकार न करूँगी। सेठजी रसोई में गए किन्तु वहाँ ताला लगा हुआ था । इधर उधर देखने पर एक सूप में पड़े हुए उड़द के वाकले दिखाई दिए। वे घोड़ों के लिए उवाले गए थे और थोड़े से वाकी बच गए थे। चन्दनबाला की प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए सेठ उन्हीं कोलेप्राया। चन्दनवाला के हाथ में वाकले देकर सेठवेडी तोड़ने के लिए लुहार को बुलाने चला गया। चन्दनवाला वाकले लेकर देहली पर बैठ गई। उसका एक पैर देहली के अन्दर था और दूसरा बाहर!पारणा करने से पहले उसे अतिथि की याद आई।वह विचारने लगी-में प्रतिदिन अतिथियों को देकर फिर भोजन करती है। यदि इस समय कोई निर्ग्रन्थ साध यहाँ पधार जाय तो मेरा अहोभाग्य हो । उन्हें शुद्ध भिक्षा देकर मैं अपना जीवन सफल करूँ । देहली पर वेठी हुई चन्दनवाला
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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