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________________ श्रीजैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग २१६ मैं न्याय कह दूँ वही उनके लिए न्याय है। सभी मेरे इशारे. पर नाचते हैं। किसी में मेरा विरोध करने कासाहस नहीं है, इस लिए इसे जबर्दस्ती पकड़ कर ले चलना चाहिए । वहाँ पहुँचने के बाद अपने आप ठीक हो जाएगी। यह सोच कर वेश्या ने उससे कहा- तुम यहाँ विकने के लिए आई हो । बीस लाख मोहरें तुमने अपनी कीमत स्वयं वताई है। जो इतनी मोहरें दे दे उसका तुम पर अधिकार हो जाता है। फिर , वह तुम्हें कहीं ले चले और कुछ काम ले, तुम्हें विरोध करने का कोई अधिकार नहीं रह जाता । बिकी हुई वस्तु पर खरीदने वाले का पूर्ण अधिकार होता है। मैंने तुम्हें खरीद लिया है। तुम्हारे आराम और सन्मान के लिए अब तक मैं तेरी खुशामद करती रही। यदि तुम ऐसेनचलोगी तो में जबर्दस्ती ले चलेंगी। यह कह कर वेश्या ने भीड़ पर कटाक्ष भरी नजर फेंकी। उसके समर्थक कुछ लोग हाँ में हॉ मिला कर कहने लगे- आप बिल्कुल ठीक कहती हैं। आपका पूरा अधिकार है। आप इससे अपनी इच्छानुसार कोई भी काम ले सकती हैं। लोगों की बात सुन कर वसुमती मन ही मन सोचने लगीये भोले प्राणी किस प्रकार कामान्ध होकर पाप का समर्थन कर रहे हैं। प्रभो! इन्हें सद्बुद्धि प्राप्त हो। उसने प्रकट में कहा-यह भीड़ ही नहीं अगर सारा संसार प्रतिकूल हो जाय तो भी मुझे धर्म से विचलित नहीं कर सकता। वसुमती की दृढ़ता को देख कर भीड़ में से कुछ लोग उसके भी समर्थक बन गए और कहने लगे-कोई किसी पर जबर्दस्ती नहीं कर सकता। वेश्या के साथ जाना या न जाना इसकी इच्छा पर निर्भर है। वेश्या के समर्थक अधिकथे इस लिए उसकासाहस बढ़ गया। उसने अपने नौकरों को आज्ञा देदी और स्वयं वसुमती को पकड़ने
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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