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________________ श्री नैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग २१३ mananas amour wow nummmmmm वसुमती इस हृदयद्रावक दृश्य को धीरतापूर्वक देख रही थी। मन में सोच रही थी कि माता ने मुझे जो शिक्षाएं दी थीं, उन्हें कार्य रूप में परिणत करके साक्षात् उदाहरण रख दिया है। ऐसी माता को धन्य है। ऐसी मां को प्राप्त करके मैं अपने को भी धन्य मानती हूँ।मां ने मुझे रास्ता बता दिया, अव मेरे लिए कोई कठिनाई नहीं है। सम्भव है, यह योदा मां की तरह मुझे भी अपनी वासनापूर्ति का विषय बनाना चाहे ।'यह भी शक्य है कि मां के उदाहरण को देख कर यह मेरे लिए कोई और षडयन्त्र रचे। इस लिए पहले से ही अपनी माता के मार्ग को अपना लँ। इसे कुछ करने का अवसर ही क्यों दें। । मन में यह विचार कर वसुमती भी प्राणत्याग करने को उद्यत हुई। ग्थी उसके इरादे से डर गया। दौड़ाहुश्रा वसुमती के पास आया और कहने लगा- बेटी ! मुझे क्षमा करो। मैंने जो पाप किया है वह भी इतना भयङ्कर है कि जन्म जन्मान्तरों में भी छुटकारा होना मुश्किल है। अपने प्राण देकर मेरे उस पापको अधिक मत वढ़ाओ। तेरी माता महासती थी, उसके वलिदान ने मेरी आँखें खोल दी हैं। मुझ पर विश्वास करो। मैं आज से तुझे अपनी पुत्री मानगा। मुझे क्षमा करो। यह कह कर रथी वसुमती के पैरों पर गिर पड़ा और अपने पाप के लिए बार बार पश्चात्ताप करने लगा। वसमती को निश्चय हो गया कि रथी के विचार अब पहले सरीखे नहीं रहे। उसने रथी को सान्त्वना दी। इसके बाद दोनों ने मिल कर धारिणी का दाहसंस्कार किया। वसमती को ले कर स्थी अपने घर आया। रथी की स्त्री को माता समझ कर वसुमती ने उसे प्रणाम किया किन्तु रथी की स्त्री वसमती को देखते ही विचार में पड़ गई। वह सोचने लगी- मेरे पति इस सुन्दर कन्या को यहाँ क्यों लाए हैं ? मालूम पड़ता है वे
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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