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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला रथी अपने मन में भावी सुखों की कल्पना करता हुआ रथ के चारों ओर परदा डाल कर उसे हाँकने लगा। नगरी की भोर जाना उचित न समझ उसने सीधे वन की ओर प्रस्थान किया। रथी अपनी हवाई उमङ्गों तथा भविष्य की सुखद कल्पनाओं में ड्वा हुआ रथ को हाँके चला जा रहा था और अन्दर बैठी हुई धारिणी वसुमती को उपदेश दे रही थी- बेटी ! यह समय घबराने का नहीं है । तुम्हारे पिता तो हमें छोड़ कर चले ही गए। यह भी पता नहीं है कि मुझे भी तेरा साथ कव छोड़ देना पड़े, इसलिए तुम्हें वीरता पूर्वक प्रत्येक विपत्ति का सामना करने के लिए अपने ही पैरों पर खड़ी होना चाहिए | वीर अपनी रक्षा स्वयं करता है किसी दूसरे की सहायता नहीं चाहता। अपने स्वप्न के दूसरे भाग को भी तुम्हें अकेली ही पूरा करना पड़ेगा । चम्पापुरी में लाखों मनुष्यों का रक्त वहा है। निर्दोष मजा को लूटा गया है। चम्पापुरी पर लगे हुए इस कलङ्क को मिटाना ही उसका उद्धार है। उसका यह कलङ्क फिर युद्ध करने से न मिटेगा । युद्ध से तो वह दुगुना हो जायगा । इस लिए तुम्हें अहिंसात्मक संग्राम की तैयारी करनी चाहिए। इस संग्राम में विजय ही विजय है, कोई पराजित नहीं होता। इसमें दोनों शत्रु मिल कर एक हो जाते हैं, फिर पराजय का प्रश्न ही खड़ा नहीं होता । २१० हिंसात्मक युद्ध की अपेक्षा अहिंसात्मक युद्ध में अधिक वीरता चाहिए । इसके लिए लड़ने वाले में नीचे लिखी बातें बहुत अधिक मात्रा में चाहिएं। इस युद्ध में सब से पहले अपार धैर्य की आवश्यकता है । भयङ्कर से भयङ्कर कष्ट आने पर भी धैर्य छोड़ देने वाला अहिंसात्मक युद्ध नहीं कर सकता। सहिष्णुता के साथ भावना का पवित्र रहना, किसी से वैर न रखना, भय रहित होना तथा सतत परिश्रम करते जाना भी नितान्त आवश्यक है। अहिंसात्मक युद्ध F
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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