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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग १६६ रखती थी। विवाह बन्धनमें पड़ जाने पर यह आशा पूरी होनीकठिन थी। इस लिए वह चाहती थी कि वसुमती आजन्म पूर्ण ब्रह्मचारिणी रह कर महिला समाज के सामने एक महान् आदर्श उपस्थित करे। इसी लिए वसुमती को शिक्षा भी इसी प्रकार की दी गई थी। उसके हृदय में भी यह भावना जम गई थी कि मैं गार्हस्थ्य के झंझटों में न पड़ कर संसार के सामने ब्रह्मचर्य, त्याग और सेवा का महान् भादर्श रक्यूँ । धारिणी वसुमती के इन विचारों से परिचितथी इसलिए राजाद्वारा विवाह की बात छेड़ीजाने परधारिणी ने कहा- वसुमती विवाह न करेगी।। __एक दिन राजा और रानी अपने महल में बैठे वमुमती के विवाह की बात सोच रहे थे। उसी समय अपने शयनागार में बैठी हुई वसुमती के मस्तिष्क में और ही तरंगें उठ रही थी। वह विचार रही थी-लोग स्त्रियों को अबला क्यों कहते हैं? क्या उनमें वही अनन्त आत्मशक्ति नहीं है जो पुरुषों में हैं ? स्त्रियों ने भी अपने अज्ञान से अपने को अवला समझ लिया है। वे अपने को पराधीन मानती हैं । स्त्रियों की इस अज्ञानता को मैं दूर करूँगी। उन्हें बताऊँगी कि स्त्रियों में भी वही अनन्त शक्ति है जो पुरुषों में है।वे भी आत्मवल द्वारा मोक्ष की आराधना कर सकती हैं। फिर वे अबला क्यों हैं। प्रभो! मुझे वह शक्ति दो जिससे मैं अपनी बहिनों का उद्धार कर सकूँ। ___ इस प्रकार विचार करते हुए वसुमती को नींद आ गई। रात के चौथे पहर में उसने एक स्वमदेखा-चम्पापुरी घोर कष्ट में पड़ी हुई है और मेरे द्वारा उसका उद्धार हुआ है। स्वम देखते ही वह जग गई और उसके फल पर विचार करने लगी। बहुत सोचने पर भी उसकी समझ में कोई बात न आई। इसी विचार में वह शय्या से उठ कर पास वाली अशोकवाटिका में चली गई
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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