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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग १६७ यह सोच कर बाहुबली ने भगवान् ऋषभदेव के पास जाने के लिए एक पैर आगे रक्खा । इतने में उनके चार घाती कर्म नष्ट हो गए। उन्हें केवलज्ञान हो गया। देवों ने पुष्पवृष्टि की। चारों ओर जय जयकार होने लगा। दोनों बहिनें अपने स्थान पर लौट गई।' पृथ्वी पर घूम घूम कर उन्होंने अनेक भव्य प्राणियों को प्रतिबोध दियो। अनेक भूले भटके जीवों को आत्मकल्याण का मार्ग बताया। कठोर तप और शुभ ध्यान द्वारा अपने कर्मों को नष्ट करने का भी प्रयत्न किया। इस प्रकार आत्मा तथा दूसरों के कल्याण की साधना करते करते उनके घाती कर्म नष्ट हो गए। केवलज्ञान और केवलदर्शन को प्राप्त कर आयुष्य पूर्ण होने पर दोनों ने मोक्ष रूपी परमपद को प्राप्त किया। इन दोनों महासतियों की सदा वन्दन हो । (३) चन्दनबाला (वसुमती) विहार प्रान्त में जो स्थान आज कल चम्पारन के नाम से प्रसिद्ध है, प्राचीन समय में वहाँ चम्पापुरी नाम की विशाल नगरी थी। वह अङ्गदेश की राजधानीथी। नगरी व्यापार का केन्द्र, धन धान्य आदि से समृद्ध तथा सब प्रकार से रमणीय थी। वहाँ दधिवाहन नाम का राजा राज्य करता करता था। वह न्याय, नीति तथा प्रजा पालन आदि गुणों का भण्डार था । प्रजा पर पुत्र के समान प्रेम रखता था और प्रजा भी उसे पिता मानती थी। ऐसे राजा को प्राप्त करके मजा अपने को धन्य समझतीथी। दधिवाहन राजा की धारिणी नाम की रानी थी। पतिसेवा, धर्म पर श्रद्धा, उदारता, हृदय की कोमलता आदि जितने गुण राजरानी में होने चाहिएं वे सब धारिणी में विद्यमान थे। राजा तथा रानीदोनों धर्मपरायण थे। दोनों में परस्पर अगाध प्रेम था। दोनों विलासिता से दूर थे। राज्य को भोग्य वस्तु न समझ
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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