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________________ १६२ ___ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला ~ ~ ~rmir w rwwwim अङ्गीकार कर सकें। सुन्दरी सहर्ष दीक्षा ले सकती है। सुन्दरी को इस सुकाये से रोकना न तो उचित है और न इसकी कोई आवश्यकता ही है। अब मैं इसके लिए उसे सहर्ष आज्ञा दे दूंगा। जिस समय भरत ने यह निश्चय किया, संयोगवश उसी समय तरण तारण,जगदाधार, प्रथम तीर्थङ्कर श्री आदि जिनेश्वर विचरते हुए अयोध्या में पधारे और नगर के बाहर एक उद्यान में ठहर गए। वमपाल द्वारा भरत को यह समाचारमालूम होते ही वे स्वजन, परिजन और पुरजन सहित बड़े ठाठ बाठ के साथ प्रभुको वन्दना करने के लिए उस उद्यान में गए । वहाँ पहुँचते ही छत्र, चमर शस्त्र, मुकुट और जूते इन पाँच वस्तुओं को अलग रख कर उन्होंने जिनेश्वर भगवान् को भक्तिपूर्वक वन्दन किया। इसके बाद उन का धर्मोपदेश सुनने के लिए वे भी अन्यान्य श्रोताओं के साथ वहीं बैठ गए। भगवान् उस समय बहुत ही मधुर शब्दों में धर्मोपदेश दे रहे थे, उसे सुन कर भरत को बहुत ही आनन्द हुआ। धर्मोपदेश समाप्त होने पर भरत ने भगवान् से नम्रतापूर्वक कहा- हे जगत्पिता ! मेरी वहिन सुन्दरी आज से साठ हजार वर्षे पहले दीक्षा लेने को तैयार हुई थी, किन्तु मैंने उसके इस कार्य में बाधा देकर उसे दीक्षा लेने से रोक दिया था। उस समय मुझे भले बुरे का ज्ञान न था । अब मुझे मालूम होता है कि मेरावइ कार्य बहुत ही अन्यायपूर्ण था । निःसन्देह अपने इस कार्य से मैं पाप का भागी हुआ हूँ। हे भगवन् ! मुझे बतलाइए कि मैं अब किस तरह इस पाप से मुक्त हो सकता हूँ। __ जिनेश्वर भगवान् से यह निवेदन करने के वाद भरत ने सुन्दरी को दीक्षा लेने की आज्ञा देते हुए उससे क्षमा प्रार्थना की। सुन्दरी ने उनका यह पश्चात्ताप देख कर उन्हें सान्त्वना देते हुए कहामुझे दीक्षा लेने में जो विलम्ब हुआ है उसमें कर्मों काहीदोष है,
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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