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________________ श्री जैन सिदान्त पोल संग्रह, पांचवां भाग १८६ बाद उनके चारों घाती कर्म नष्ट होगए और उन्होंने केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त किया अर्थात् वे सर्वज्ञ और सर्वदशी होगए। संसार का कल्याण करने के लिए उन्होंने धर्मोपदेश देना शुरू किया। भगवान की पहली देशना में भरत महाराज के पाँच सौ पुत्र और सात सौ पौत्रों ने वैराग्य प्राप्त किया और भगवान् के पास दीक्षा अंगीकार कर ली। ___ विहार करते करते भगवान् अयोध्या में पधारे। भरत चक्रवर्ती को यह जान कर बड़ा हर्ष हुना। ब्राह्मी,सुन्दरी तथा दूसरे परिवार के साथ भरत चक्रवर्ती भगवान् को वन्दना करने के लिए गए। धर्मकथा सुनकर सब के चित्त में अपार आनन्द हुआ।भगवान् ने कहा- विषय भोगों में फंस कर अज्ञानीजीव अपने स्वरूप को भूल जाते है । जो प्राणी अपना स्वरूप समझ कर उसी में लीन रहता है, सांसारिक विषयों से विरक्त होकर धर्म में उद्यम करता है वही कर्मबन्ध कोकाट कर मोक्ष रूपीअनन्त सुख को प्राप्त करता। है। सांसारिक सुख क्षणिक तथा भविष्य में दुःख देने वाले हैं। मोक्ष का सुख सर्वोत्कृष्ट तथा अनन्त है इस लिए भव्य प्राणियों को मोक्ष प्राप्ति के लिये उद्यम करना चाहिए। ब्राह्मी भगवान् के उपदेश को बड़े ध्यान से सुन रही थी। उस के हृदय में उपदेश गहरा असर कर रहा था। धीरे धीरे उसका मन संसार से विरक्त होकर संयम की ओर झुक रहा था। सभा समाप्त होने पर ब्राह्मी भगवान् के पास आई और वन्दना करके बोली- भगवन् !आपका उपदेश सुन कर मेरा मन संसार से विमुख हो गया है। मुझे अब किसी वस्तु पर मोह नहीं रहा है। इस लिये दीक्षा देकर मुझे कृतार्थ कीजिए । संसार के वन्धन मुझे बुरेलगते हैं। मैं उन्हें तोड़ डालना चाहती है। भगवान् ने फरमायाग्रामी! इस कार्य के लिये भरत महाराज की आज्ञालेना आवश्यक
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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