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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग १८७ maurorummannammannana narx nonnonmmornom हो जाने पर पहले पहल उन्होंने ही व्यवस्था की थी। उन्होंने ही पहले पहल कर्ममार्ग का उपदेश दिया था। उन्हीं के शासन में यह देश अकर्मभूमि (भोग भूमि) से बदल कर कर्मभूमि बना। उनके दोगुणवतीरानियॉथीं। एक का नाम था सुमंगला और 'दूसरी का नाम सुनन्दा। - एक बार रात के चौथे पहर में मुमंगला रानी ने चौदह महास्वम देखे । स्वम देखते ही वह जग गई और सारा हाल पति को कहा। पति ने बताया कि इन खमों के फल स्वरूप तुम्हें चक्रवर्ती पुत्र की प्राप्ति होगी। यह सुन कर सुमंगला कोबड़ी प्रसन्नता हुई। गर्भवती स्त्री के लिए बताए गए नियमों का पालन करती हुई वह प्रसन्नता पूर्वक दिन विताने लगी। वैद्यकशास्त्र में लिखा है- गर्भवती स्त्रियों को बहुत गरम, बहुत ठंडा, गरम मसालों वाला, तीखा, खारा, खट्टा, सड़ागला, भारी और पतला भोजन न करना चाहिए । अधिक हँसना, बोलना, सोना, जागना, चलना, फिरना, ऐसी सवारी पर बैठना जिस पर शरीर को कष्ट हो, अधिक खाना, बार बार अंजन लगाना, थक जाय ऐसा काम करना, अयोग्य नाटक तथा खेल तमाशे देखना, प्रतिकूल हँसी खेल करना,ये सभी बातें गर्भवती के लिये वर्जित हैं। इनसे गर्भस्थ जीव में किसी प्रकार की खामी होने का डर रहता है। __ गर्भवती स्त्री को मन की घबराहट और थकावट के बिना जितनी देर प्रसन्नता और उत्साहपूर्वक हो सके ऐसी पुस्तकें या जीवन चरित्र पढ़ने चाहिएं जिन से शिक्षा मिले। सदा रुचिकारक र और गर्भ को पुष्ट करने वाला आहार करना चाहिए । धर्मध्यान, दया दान और सत्य वगैरह में रुचि रखनी चाहिए । शरीर पर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए औरचित्त में उत्तम विचार रखन
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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