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________________ mmmmmmm १७६- -- श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला ~ ~ ~rormmar - mmmmmmmmmar - rm (१६) कल्योज-कल्योज यदि अपहियमाण वस्तु और अप हार समय दोनों कन्योज हों तो उसे कल्योजकल्योज कहते हैं। जैसे- ५। पाँच में से चार को एक ही बार घटाया जा सकता है इस लिए अपहार समय कल्योज है तथा चार घटाने पर एक बच जाता है इस लिए अपहियमाण वस्तु भी कल्योज है। नोट- ऊपर उदाहरण में दी गई संख्याएं जघन्य हैं। इसी क्रम को लेकर बड़ी संख्याओं को भी यथासम्भव महायुग्मों में वॉटा जा सकता है। (भगवती सूत्र, शतक ३५ उद्देशा १) ८७२-द्रव्यावश्यक के सोलह विशेषण जिस व्यक्ति ने आगम सीख लिया हो या कण्ठस्थ कर लिया हो वह जिस समय उपयोग रहित हो, उस समय उसे द्रव्यावश्यक कहते हैं। द्रव्यावश्यक के सोलह विशेषण है (१) शिक्षित- सारे आवश्यक मूत्र को सीरव लिया हो। (२)स्थित-हृदय में स्थिर कर लिया हो अर्थात् जमा लिया हो। (३)जित-जीत लिया हो अर्थात् शीघ्र स्मरण में आने वाला बना लिया हो। (४) मित- आवश्यक में कितने अक्षर हैं कितने पद हैं इत्यादि संख्या द्वारा उसके परिमाण को जान लिया हो। (५) परिजित- इस प्रकार कण्ठस्थ कर लिया हो कि उल्टा फेरने पर भी तत्काल सारा स्मरण में श्रा जाय। (६) नामसम-जिस प्रकार अपना नाम स्थिर अर्थात जमा हुआ होता है उसी प्रकार यदि आवश्यक भी स्थिर हो जाय तो वह नामसम है। (७) घोषसम-गुरु द्वारावताए गए उदात्त, अनुदात्त और स्वरित आदिघोष अर्थात् स्वरों का उन्हीं के समान उच्चारण करके जोग्रहण किया गया हो उसे घोपसम कहते हैं।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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