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________________ १५० श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाना AAAAAAAA ~ ^^^^^^^~ 4733 AVV उनसे वही वस्तु परोसने में धोने की आवश्यकता नहीं रहती इस लिए वहाँ पुरःकर्म दोष की सम्भावना नहीं है। (ङ) जिस पदार्थ के लेने की इच्छा हो यदि उसी से हाथ या परोसने का वर्तन संसृष्ट हो तभी उसे लेना चाहिए । (७) मोक्षार्थी को मद्य मांस आदि अभक्ष्य पदार्थों का सेवन न करना चाहिए। किसी से ईर्ष्या न करनी चाहिए। पौष्टिक पदार्थों का अधिक सेवन न करना चाहिए। प्रतिदिन चार बार कायोत्सर्ग करना चाहिए। कायोत्सर्ग में आत्मचिन्तन और धर्मध्यान करने आत्मा निर्मल होती है । सदा वाचना पृच्छना आदि स्वाध्याय में लगे रहना चाहिए | स्वाध्याय से ज्ञान की वृद्धि होती है और चित्त में स्थिरता आती है । ( ८ ) विहार करते समय साधु श्रावकों से शयन, आसन, निषद्या, भक्त, पानी आदि किसी भी वस्तु के लिए प्रतिज्ञा न करावे अर्थात् किसी भी वस्तु के लिए यह न कहे कि अमुक वस्तु लौटने पर मुझे वापिस दे देना और किसी को मत देना इत्यादि । गॉव, कुल, नगर या देश किसी भी वस्तु में साधु को ममत्व न करना चाहिए। (६) मुनि गृहस्थों का वेयावच, अभिवादन, वन्दन, पूजन तथा सत्कार यदि न करे। ऐसे संक्लेश रहित साधुओं के संसर्ग में रहे जिन के साथ रहने में संयम की विराधना न हो । (१०) यदि अपने से अधिक या बरावर गुणों वाला तथा संयम में निपुण कोई साधु न मिले तो मुनि पाप रहित तथा विषयों में अनासक्त होता हुआ अकेला ही विचरे किन्तु शिथिलाचारी और पासन्थों के साथ नरहे । ( ११ ) एक स्थान पर चतुर्मास में चार महीने और दूसरे समय में उत्कृष्ट एक महीना रहने का शास्त्र में विधान है। जिस स्थान पर एक बार मासकल्प या चतुर्मास करे, दो या तीन चतुर्मास
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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