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________________ सोलहवाँ बोल संग्रह ८६१ - दशवैकालिक सूत्र द्वितीय चूलिका की सोलह गाथाएं दशवैकालिक सूत्र में दस अध्ययन और दो चूलिकाएं हैं। पहली चूलिका में १८ गाथाएं हैं। उनमें धर्म में स्थिर होने का मार्ग बताया गया है। दूसरी चूलिका का नाम विविक्तचर्या है। इस में सोलह गाथाएं हैं और साधु के लिए विहार आदि का उपदेश दिया गया है | गाथाओं का भावार्थ क्रमशः नीचे लिखे अनुसार ' ( १ ) केवली द्वारा भाषित श्रुत स्वरूप चूलिका को कहूँगा, जिसे सुन कर धर्म में श्रद्धा उत्पन्न होती है । (२) जब काठ नदी के प्रवाह में गिर जाता है तो वह नदी के वेग के साथ समुद्र की ओर बहने लगता है इसी प्रकार जो जीव विषय रूपी नदी के प्रवाह में पड़े हुए हैं वे संसार समुद्र की ओर बहे जा रहे हैं। जो जीव संसार सागर से विमुख होकर मुक्ति जाने की इच्छा रखते हैं उन्हें विषय रूपी प्रवाह से हट कर अपने को संयम रूपी सुरक्षित स्थान में स्थापित करना चाहिए । ( ३ ) जिस प्रकार काठ नदी में अनुस्रोत (बहाव के अनुसार) बिना किसी कठिनाई के सरलता पूर्वक चला जाता है किन्तु प्रतिस्रोत ( बहाव के विपरीत) चलने में कठिनाई होती है उसी प्रकार संसारी जीव भी स्वाभाविक रूप से अनुस्रोत अर्थात् विषय भोगों की ओर बढ़े चले जाते हैं । प्रतिस्रोत अर्थात् विषय भोगों से विमुख होकर संयम की ओर बढ़ना बहुत कठिन है। सांसारिक कार्यों के लिए बड़े बड़े वीर कहलाने वाले व्यक्ति भी संयम के लिए अपनी असमर्थता प्रकट करते हैं ।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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