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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग १११ में तथा नीचे पहले में जाता है। चौथे गुणस्थान वाला ऊपर पाँचवें या सातवें में तथा नीचे पहले,दूसरे और तीसरे में जाता है। पाँचवें वाला नीचे पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे में तथा ऊपर सातवें में जाता है। छठे गुणस्थान वाला नीचे पाँच गुणस्थानों में तथा ऊपर सातवें में जाता है।सातवें गुणस्थान वाला नीचे छठे में और ऊपर आठवें में जाता है, काल करे तो चौथे में जाता है। आठवें गणस्थान वाला नीचे सातवें में और ऊपर नवें में जाता है,काल करने पर चौथे में जाता है। दसवें गुणस्थान वाला नीचे नवें में और ऊपर ग्यारहवें या बारहवें गुणस्थान में जाता है । ग्यारहवें गुणस्थान वाला गिरे तो दसवें में और काल करे तोचौथे में जाता है, ऊपर नहीं जाता । बारहवें गुणस्थान वाला तेरहवें में ही जाता है। तेरहवेंवाला चौदहवें में और चौदहवें वाला मोक्ष में ही जाता है। (२१) ध्यान द्वार-पहले और तीसरे गुणस्थान में भान तथा रौद्रदोध्यान पाए जाते हैं। दसरे,चौथे तथा पाँचवें में तीन बार्तध्यान,रौद्रध्यान और धर्मध्यान । छठे में आर्तध्यान और धर्मध्यान। सातवें में केवल धर्मध्यान । पाठवें से तेरहवें तक शुक्लध्यान । चौदहवें में परम शुक्लध्यान । (२२ ) दण्डक द्वार-पहले गुणस्थान में चौवीस ही दण्डफ पाए जाते हैं। दूसरे में पॉच स्थावर के पाँच दण्डकों को छोड़ कर १६ । तीसरे और चौथे में तीन विकलेन्द्रिय को छोड़ कर सोलह। पाँचवें में मनुष्य और सज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यश्च येदो।छठे से लेकर चौदहवें तफ मनुष्य का एक ही दण्डक पाया जाता है। (२३)जीव योनि द्वार- पहले गुणस्थान में ८४ लाख जीव योनियाँ पाई जाती हैं। दूसरे में एकेन्द्रिय की ५२ लाख छोड़ कर शेष ३२ लाख । तीसरे और चौथे में विकलेन्द्रिय की छः लाख घटने पर २६ लाख । पाँचवें में १८ लाख-चौदह लाख मनुष्यों
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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