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________________ ६ wwwrarwww श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला • mmm rrrrmnwra. पाँचवे गुणस्थान में होता है। (६)छठे गुणस्थान में ८१ प्रकृतियों का उदय होता है। ऊपर लिखी ८७ में से नीचे लिखी आठ घटाने पर ७६ वच जाती हैं। उनमें श्राहारक शरीर और आहारक अंगोपांग नामकर्म मिलाने पर ८१ हो जाती हैं । वे आठ प्रकृतियाँ इस प्रकार हैं-(१) तिर्यञ्चगति (२) तिर्यश्च आयु (३) नीच गोत्र (४) उद्योत नामकर्म और (५-८) प्रत्याख्यानावरण चार कपाय। (७) सातवें गुणस्थान में ७६ प्रकृतियों का उदय होता है । उपरोक्त ८१ में से निद्रानिद्रा,प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि,आहारक शरीर और आहारक अंगोपांग इन पाँच प्रकृतियों का उदय छठे गणस्थान के अन्त तक ही रहता है। इस लिए सातवे गुणस्थान में इन पाँच प्रकृतियों के घटाने पर शेष ७६ वच जाती हैं। (८) आठवें गणस्थान में ७२ प्रकृतियों का उदय होता है। सम्यक्त्व मोहनीय और अन्त के तीन संहनन इन चार प्रकृतियों का सातवें गुणस्थान के अन्त में विच्छेद हो जाता है, इस लिए आठवें गुणस्थानमें ऊपर बताई गई ७६ प्रकृतियों में से चार कम हो जाती हैं। (8) नवेंगुणस्थान में ६६प्रकृतियों का उदय होता है। ऊपर बताई गई ७२ में से नीचे लिखी छः कम हो जाती हैं-हास्य, रति, अरति, भय, शोक और जुगुप्सा ।। (१०) दसवें गुणस्थान में ६० प्रकृतियों का उदय होता है। पूर्वोक्त ६६ में से नीचे लिखी छः कम हो जाती हैं- (१) स्त्रीवेद (२) पुरुष वेद (३) नपुंसक वेद (४) संज्वलन क्रोथ (५) संज्वलन मान (६) संज्वलन माया । (११) ग्यारहवें गुणस्थान में ५६ प्रकृतियों का उदय होता है। पूर्वोक्त ६० में से संज्वलन लोभ कम हो जाता है।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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