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________________ 5 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला जन्म में एक ही श्रेणी कर सकता है अत एव जिसने एक बार उपशम श्रेणी की है वह फिर उसी जन्म में क्षपक श्रेणी नहीं कर सकता। ८४ उपशम श्रेणी के प्रारम्भ का क्रम संक्षेप में इस प्रकार है-- चौथे, पाँचवें, छठे, और सातवें गुणस्थान में से किसी भी गुणस्थान में वर्तमान जीव पहले चार अनन्तानुबन्धी कपायों का उपशम करता है । इसके बाद अन्तर्मुहूर्त में एक साथ दर्शन मोह की तीनों प्रकृतियों का उपशम करता है। इसके बाद वह जीव छठे तथा सातवें गुणस्थान में सैकड़ों बार आता जाता है, फिर आठवें गुणस्थान मैं होकर नवें गुणस्थान को प्राप्त करता है और नवें गुणस्थान में चारित्र मोहनीय कर्म की शेष प्रकृतियों का उपशम शुरू करता है। सबसे पहले वह नपुंसक वेद का उपशम करता है, इसके बाद स्त्रीवेद का उपशम करता है | हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगुप्सा, पुरुषवेद, अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण के क्रोध, मान, माया, लोभ तथा संज्वलन के क्रोध, मान और माया इन सव प्रकृतियों का उपशम नर्वे गुणस्थान के अन्त तक करता है। संज्वलन लोभ को दसवें गुणस्थान में उपशान्त करता है । (१२) क्षीणकषाय छद्मस्थ वीतराग गुणस्थान- जिस जीव ने मोहनीय कर्म का सर्वथा क्षय कर दिया है किन्तु शेष छद्म (घाती कर्म ) अभी विद्यमान हैं उसे क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ कहते हैं और उसके स्वरूप को क्षीणकषाय वीतरागछद्मस्थ गुणस्थान कहते हैं। इस गुणस्थान की स्थिति अन्तर्मुहूर्त होती है। इसे क्षपक श्रेणी वाले जीव ही प्राप्त करते हैं । क्षपक श्रेणी का क्रम संक्षेप में इस प्रकार है- जो जीव क्षपक श्रेणी करने वाला होता है वह चौथे गुणस्थान से लेकर सातवें गुणकिसी भी गणास्थान में सब से पहले अनन्तातवन्धी 1
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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