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________________ ७१ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला रुचि करता है और न एकान्त अरुचि। जिस प्रकार नारिकेल द्वीप निवासी पुरुष प्रोदन (भात) के विषय में न रुचि रखते हैं,न अरुचि। जिस द्वीप में प्रधानतया नारियल पैदा होते हैं,वहाँ के निवासियों ने चावल आदि अन्न न तो देखा है और न सुना है। इससे पहले बिना देखे और बिना सुने अन्न को देख कर वे न तोरुचि करते हैं और न अरुचि,किन्तु समभाव रखते हैं इसी प्रकार सम्यमिथ्यादृष्टि जीव भी सर्वज्ञ कथित मार्ग पर प्रीति या अप्रीति कुछ न करके समभाव रखता है। इस प्रकार की स्थिति अन्तर्मुहूर्त ही रहती है। इसके बाद सम्यक्त्व या मिथ्यात्व इन दोनों में से कोई प्रबल हो जाता है,अत एव तीसरे गुणस्थान की स्थिति अन्तर्मुहूर्त मानी गई है। (४)अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान-सावध व्यापारों को छोड़ देना अर्थात् पापजनक व्यापारों से अलग हो जाना विरति है। चारित्र और व्रत, विरति का ही नाम है। जो जीव सम्यग्दृष्टि हो कर भी किसी प्रकार के व्रत को धारण नहीं कर सकता वह जीव भविरतसम्यग्दृष्टि है और उसका स्वरूपविशेष अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान कहा जाता है। अविरत जीव सात प्रकार के होते हैं (क) जो व्रतों को न जानते हैं, न स्वीकारते हैं और न पालते हैं, ऐसे साधारण लोग। (ख) जो व्रतों को जानते नहीं, स्वीकारते नहीं किन्तु पालते हैं, ऐसे अपने श्राप तप करने वाले तपस्वी। (ग) जो व्रतों को जानते नहीं किन्तु स्वीकारते हैं और स्वीकार करपालतेनहीं,ऐसे ढीले पासत्थेसाधुजोसंयमलेफर निभाते नहीं। (घ) जिनकोव्रतों का ज्ञान नहीं है किन्तु उनका स्वीकार तथा पालन घरावर करते हैं, ऐसे अगीतार्थ मुनि। (ङ) जो व्रतों को जानते हुए भी उनका स्वीकार तथा पालन नहीं करते, जैसे श्रेणिक, कृष्ण आदि।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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