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________________ ६२ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला हुमा घट कपाल (ठीकरें) रूप में बदल जाता है इसी प्रकार दीए की आग भी दूसरे रूप में बदल जाती है सर्वथा नष्ट नहीं होती, क्योंकि किसी वस्तु का सर्वथा नाश नहीं हो सकता। शङ्का-यदि दीपक का सर्वथा नाश नहीं होता तो बुझाने के पाद दिखाई क्यों नहीं देता? समाधान-प्रदीप के बुझ जाने पर वह अन्धकार के रूप में परिणत हो जाता है और अन्धकार के रूप में दिखाई भी देता है। बहुत सी वस्तुएं सूक्ष्म होने से नहीं भी मालूम पड़ती, जैसे विखरते हुए काले बादल या वायु में धीरे धीरे उड़ते हुए सूक्ष्म परमाणु । इस लिए किसी वस्तु की सूक्ष्म परिणति न दिखाई देने मात्र से उसे असत् नहीं कहा जा सकता । बहुत से पुद्गल विकार को प्राप्त होने पर दूसरी इन्द्रिय से ग्रहण किए जाते हैं। जैसे सोना पहले चक्षु इन्द्रिय से जाना जा सकता है । गलाने के बाद राख में मिल जाने पर केवल स्पर्श का विषय होता है। फिर भस्म से अलग कर देने पर चक्षु से जाना जा सकता है। इसी प्रकार नमक, गुड़ आदि बहुत से पदार्थ पहले चनु से जाने जा सकते हैं किन्तु शाक श्रादि में मिलने पर केवल रसनेन्द्रिय से जाने जाते हैं, इत्यादि पातों से मालूम पड़ता है कि पुद्गलों के परिणाम बहुत ही विचित्र हैं। पुद्गल सूक्ष्मता को प्राप्त होने पर बिल्कुल नहीं दिखाई देते। इस लिए किसी भी वस्तु का रूपान्तर हो जाने पर उसका सर्वथा नाश मानना ठीक नहीं है। दीपक भी पहले चक्षु इन्द्रिय से जाना जाता है, किन्तु बुझने पर प्राणेन्द्रिय से जाना जाता है। उसका सर्वथा समुच्छेद नहीं होता। इसी प्रकार जीव भी निर्वाण होने पर सिद्धस्वरूप हो जाता है उसका नाश नहीं होता। इस लिए जीव । के विद्यमान रहते हुए दुःखादि का नाश हो जाना मोक्ष है। । । साजीव के जन्म, जरा, व्याधि, मरण, इष्टवियोग, मरति,
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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