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________________ ६० श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला है किपरलोक है या नहीं ? तुम्हारा कहना है अगर जीव को पाँच. भौतिक माना जाय तब तो परलोक हो ही नहीं सकता। अगर भूतों से आत्मा को अलग माना जाय तो भी उत्पत्ति वाला होने से उसे अनित्य अर्थात् नश्वर मानना पड़ेगा।नवर होने से उसका शरीर के साथ ही नाश हो जायगा और परलोक गमन नहीं होगा। इस प्रकार मीपरलोक की सिद्धि नहीं होती। वर्ग और नरक के प्रत्यक्ष न दिखाई देने से उन्हें मानने में कोई प्रमाण नहीं है। यह ठीक नहीं है। स्वर्ग,नरक तथा आत्मा की सिद्धि पहले की जा चुकी है। उसी तरह यहाँ भी समझ लेना चाहिए । शङ्का-आत्मा ज्ञानस्वरूप है और ज्ञान क्षणिक है, इस लिए आत्मा को भी क्षणिक मानना पड़ेगा। यदि आत्मा को ज्ञान से मित्र माना जाय तो वह जड़ स्वरूप हो जायगा। समाधान-सभी वस्तुएं उत्पाद, व्यय और धौम्य इन तीन गुणों वाली हैं। प्रात्मा के ज्ञानादि बदलते रहने पर भी चैतन्य ध व है। इस लिए उसका नाश नहीं होता । ज्ञान भी एकान्त क्षणिक नहीं होता, क्योंकि गुण है। इसी प्रकार संसार की सभी वस्तुएं नित्यानित्य हैं। , इस प्रकार पहले कही हुई युक्तियों से समझाने पर मेतार्यस्वामी का संशय दर हो गया। वे भगवान के शिष्य हो गए और दसवें गणधर कहलाए । (गा० १६४६-१६७१) (११) प्रभास स्वामी- दर्शनों के लिए आए हुए प्रभास स्वामी को देख कर भगवान ने कहा-हे आयुष्मन प्रभास! तुम्हारे मन में संशय है कि निर्वाण है या नहीं? अगर निर्वाण होता है, तो क्या दीपक की तरह होता है? अर्थात् जैसे दीपक बुझने के बाद उसका कोई अस्तित्व नहीं रहता, इसी तरह निर्वाण हो जाने पर प्रात्मा का अस्तित्व भी मिट जाता है। यह बौद्ध मान्यता है। बौदाचार्य अश्व
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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