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________________ - - श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला सन्देह दूर होने पर वे उनके शिष्य हो गए और पांचवें गणधर कहलाए। (६) मण्डित स्वामी-इन्द्रभूति से सुधर्मा स्वामी तक को दीक्षित हुआ जान कर मण्डित स्वामी भगवान की वन्दना करने के लिए गए उन्हें देखते ही भगवान ने कहा-हे मण्डित । तुम्हारेम में सन्देह है कि वन्ध और मोक्ष हैं या नहीं। बन्ध और मोक्ष का अभाव सिद्ध करने के लिए तुम नीचे लिखी युक्तियाँ उपस्थित करते हो जीव के साथ होने वाला कर्मों का बन्ध सादि है या अनादि ! यदि सादि है तो पहले जीव की सृष्टि होती है पीछे कर्मों की, अथवा पहले कर्मों की सृष्टि होती है फिर जीवों की,या दोनों की साथ होती है ? पहले जीव पीछे कर्म कहना ठीक नहीं है, क्योंकि कर्मों के बिना जीव की उत्पचि नहीं हो सकती। जीव का जन्म अर्थात् उत्पत्ति कर्म द्वारा ही होती है। विना कर्म वह कैसे उत्पन्न हो सकेगा? अगर विना कारण भी कोई वस्तु उत्पन्न होने लगे तो खरा भी उत्पन्न होने लगेंगे। अगर प्रात्मा को अनादि और फिर कर्मों की उत्पत्ति मानी जाय तो भी ठीक नहीं है । इस तरह कर्मों का आत्मा के साथ सम्बन्ध नहीं हो सकेगा क्योंकि शुद्ध भात्मा के साथ कर्मबन्ध नहीं होता । अगर शुद्ध के साथ भी कर्मबन्ध हो तो मुक्त जीवों को भी कर्मवन्य हो लगेगा। पहले कर्म पीछे जीव मानना भी ठीक नहीं है। क्योंकि जीव कों का कर्ता है और कर्ता के बिना कर्मरूप कार्य उत्पन्न नहीं हो सकता। दोनों की एक साथ उत्पत्ति मानना भी ठीक नहीं है। एक साथ उत्पन्न होने पर भी जीव कर्मों का कर्ता नहीं हो सकता। इन दोनों का पास्सर सम्बन्ध भी नहीं हो सकता । पहले वाले सभी दोष इस पक्ष में भी समान हैं। इसलिए जीव और कर्मों को सादि नहीं
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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