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________________ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला से कार्यविशेष उत्पन्न होता हुआ दिखाई देता है, इस के लिए भिन्न मित्र कार्यों के उत्पन्न होने से पहले कारण का वास्तविक अस्तित्व मानना आवश्यक है। इस प्रकार बहुत सी युक्तियों से समझाने के बाद भगवान ने व्यक्त से कहा-हे व्यक्त ! पृथ्वी, जल और अमि तो सभी के प्रत्यक्ष हैं, इस लिए इनका अपलाप नहीं किया जा सकता। वायु का भी स्पर्श होने से वह प्रत्यक्ष ही है। इसका अस्तित्व अनुमान से भी सिद्ध किया जा सकता है-शरीर के साथ होने वाले अदृश्य स्पर्श आदि बिना गुणी के नहीं हो सकते, क्योंकि गुण हैं, जो गुण हैं वे गुणी के बिना नहीं होते, जैसे घट के रूपादि । स्पर्श, शब्द स्वास्थ्य, कम्प आदि गुणों का आधार गुणी वायु ही है। आकाश का अस्तित्व सिद्ध करने के लिए नीचे लिखा अनुमान है-पृथ्वी, जल, अमि और वायु आधार वाले हैं, क्योंकि मत हैं। जैसे पानी का आधार घट है । संसार में पृथ्वी आदि वस्तुओं का आधार आकाश ही है, इससे आकाश की भी सिद्धि हो जाती है। इत्यादि युक्तियों से समझाया जाने पर व्यकस्वामी का संशय दूर हो गया और वे भगवान महावीर के शिष्य हो गए। (५) सुधर्मा खामी- व्यक्तखामी को दीक्षित हुआ जान कर सुधर्मास्वामी भी भगवान महावीर के पास वन्दना आदि के लिए गए । सुधर्मा स्वामी को देखते ही भगवान ने कहा-हे सुधर्मन् ! तुम्हारे मन में सन्देह है कि मनुष्यादि मर कर दूसरे भव में पूर्वमव सरीखे ही रहते हैं या बदल जाते हैं। यह सन्देह तुम्हारे मन में विरुद्ध वेदवाक्यों के कारण हुआ है। एक वाक्य कहता है'पुरुषोनु मृतः सन परभवे पुरुषत्वमेवाभुते प्रामोति' तथा 'पशवों । गवादयः पशुत्वमेव' इत्यादि अर्थात् पुरुष मर कर परमव में पुरुष ही होता है और गाय आदिपशु मर कर पशु होते हैं। इस वाक्य
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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