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________________ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला बालूरेत के एक कण में तेल नहीं है तो बहुत सी रेत इकट्ठी होने पर भी तेल पैदा नहीं हो सकता । ३८ कारण के विना कार्य सिद्ध नहीं होता और कार्य के बिना कारण सिद्ध नहीं हो सकता इसलिए अन्योऽन्याश्रय दोष- श्रा जाएगा । इसलिए नोभयतः भी संभव नहीं है । चौथा विकल्प भी सिद्ध नहीं होता क्योंकि स्वतः और परतः को छोड़कर और कोई विकल्प हो ही नहीं सकता । इसी प्रकार हस्व दीर्घ च्यादि व्यवहार भी अपेक्षा पर ही निर्भर हैं। इसलिए इसमें भी वे दोष हैं जो कार्य और कारण में बताए गए हैं। मध्यमा अङ्ग ुली की अपेक्षा तर्जनी छोटी कही जाती है और कनिष्ठा की अपेक्षा वही । वास्तवमें न कोई छोटी है न बड़ी। इस लिए संसार में वास्तविक पदार्थ कोई भी नहीं है । सभी शून्य हैं। केवल कल्पना के आधार पर सारा प्रपश्च दिखाई देता है । "इत्यादि युक्तियों से संसार में सर्वशून्यता का सन्देह करने वाले व्यक्वस्वामी को भगवान ने कहा- आयुष्मन् व्यक्त ! पृथ्वी आदि भूतों में तुम्हारा संशय नहीं होना चाहिए, क्योंकि जो वस्तु श्राकाशकुसुम की तरह सर्वथा असत् है उसमें संशय नहीं हो सकता । तुम्हारे इस संशय से ही सिद्ध होता है कि पृथ्वी आदि पांच भूत हैं। यदि सभी वस्तुएँ असत् हैं तो स्थाणु और पुरुष विषयक ही संशय क्यों होता है । गगनकुसुम विषयक संशय क्यों नहीं होता । जो वस्तु किसी एक स्थान पर प्रमाण द्वारा सिद्ध होती है उसी का दूसरी जगह संशय होता है, जो वस्तु स था असत् है उसमें संशय नहीं हो सकता । संशय उत्पन्न होने के लिए ज्ञाता, ज्ञान, ज्ञेय आदि सामग्री आवश्यक है। सर्वशून्य मानने पर सामग्री न रहेगी और संशय भी उत्पन्न न होगा । शङ्का - सर्वथा अभाव होने पर भी स्वप्न में संशय होता है। जैसे M
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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