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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला आहारों का त्याग करता है, धोती की लांग नहीं देता, दिन में ब्रह्मचारी रहता है और रात्रि में मैथुन की मर्यादा करता है । इस प्रकार विचरता हुआ वह कम से कम एक दिन दो दिन या तीन दिन से लेकर अधिक से अधिक पांच मास तक विचरता रहता है। (६) दिया वि राम्रो वि चंभयारी-छठी पंडिमा में सर्व धर्म विष. यक रुचि होती है। वह उपरोक्त सब व्रतों का सम्यक् रूप से पालन करता है और पूर्ण ब्रह्मचर्या का पालन करता है, किन्तु वह सचित पाहार का त्याग नहीं करता अर्थात् औषधादि सेवन के समय या अन्य किसी कारण से वह सचित्त का सेवन भी कर लेता है। इस पडिमा की अवधि कम से कम एक दो या तीन दिन है और अधिक से अधिक छः मास है। (७) सचिच परिणाए- सातवीं पडिमा में सर्व धर्म विषयक रुचि होती है। इस में उपरोक्त सब नियमो का पालन किया जाता है इस पडिमा का धारक पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता है और सचित्त आहार का सर्वथा त्याग कर देता है किन्तु प्रारम्भ का त्याग नहीं करता। इसकी उत्कृष्ट काल मर्यादा सात मास है। (८) प्रारम्भ परिएकाए-आठवीं पडिमा में सर्व धर्म विषयक रुचि बनी रहती है। इसका धारक सर्व नियमों का पालन करता है । सचित्त आहार और प्रारम्भ का त्याग कर देता है किन्तु वह दूसरों से प्रारम्भ कराने का त्याग नहीं करता। इसकी कालमर्यादा जघन्य एक दिन दो दिन या तीन दिन है और उत्कृष्ट आठ मास है। (६) पेस परिणाए- नवमी पडिमा को धारण करने वाला उपासक उपरोक्त सबै नियमों का यथावत् पालन करता है। प्रारम्भ का भी त्याग कर देता है किन्तु उद्दिष्ट भक्त का परित्याग नहीं करता अर्थात् जो भोजन उसके निमित्त तय्यार किया जाता है उसे वह ग्रहण कर लेता है। वह स्वयं प्रारम्भ नहीं करता
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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