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________________ श्री जैन सिद्धान्त पोख संग्रह, चौथा भाग मत्र आदि परिठवने की जगह को देखा न हो या अच्छी जरह से न देखा हो। (4) अप्पमज्जिय दुप्पमज्जिय उच्चारपासवणभूमी-मल मत्र आदि परिठवने की जगह की पडिलेहणा न की हो या अच्छी तरह से न की हो। . (5 पोसहस्स समं अणणुपालणया-पौषध' का सम्यक् प्रकार से पालन न किया हो। (12) बारहवां अतिथिसविभाग व्रत: निर्दोष आहार, पानी,खादिम, स्वादम, वस्त्र,पात्र, कम्बल, पादपोंछन, पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक, औषध और मेषन यह चौदह प्रकार की वस्तुएं केवल भात्म कल्याण की भावना से भक्ति भावपूर्वक पञ्च महाव्रतधारी साधु साध्वियों को उनके कल्प के अनुसार देना अतिथि संविभाग व्रत है / साधु माध्ची का सयोग न मिलने पर उन्हें दान देने की भावना रखनी चाहिए / बारहवे प्रत के पांच अतिचार / (1) सचित्तनिक्खेवणया-साधु को नहीं देने की बुद्धि से अचित्त वस्तु को सचित्त वस्तु पर रखना / (2) सचित्तपिहणया-साधु को नही देने की बुद्धि से अवित वस्तु को सक्ति फलादि वस्तु से ढकना। (3) कालाइकम्मे साधुओं के मिक्षा के समय का उन्लंघन करना। (4) परववएसे- साधु को न देने की बुद्धि से अपनी वस्त दूसरे की कहना।
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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