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________________ 500 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला - (8)चौथा स्वदारसंतोषपरदारविरमण व्रत * अपनी विवाहित स्त्री में संतोष रखते हुए परस्त्रीगमन का त्याग करना स्वदार सन्तोष परदार विरमण व्रत है। प्रतिज्ञाः-मैं अपनी विवाहित स्त्री के सिवाय परस्त्री(देव सम्बन्धी दो करण तीन योग से और मनुष्य तिर्यश्च सम्बन्धी एक करण एक योगसे सेमैथुन सेवन कायावज्जीवन त्याग करता हूं और स्वस्त्री के साथ भी एक मास में..."रात्रि के उपरान्त त्याग करता हूं। चौथे व्रत के पांच अतिचार, / (1) इत्तरिय परिग्गहियागमणे-अल्प समय के लिए अपने अधीन की हुई इत्वर परिगृहीता कहलाती है। उसके साथ गमन करने के लिए पालाप संलापादि करना अथवा अल्प वय गली अर्थात् भोग के लिए अपरिपक्व उम्र वाली अपनी विवाहिता स्त्री से गमन करना। / (2) अपरिग्गहिया गमणे-वेश्या,अनाथ, कन्या, विधवा, कुलवधू आदि अपरिगृहीता कहलाती हैं। इनके साथ क्रीड़ा करने के लिए पालाप संलापादि करना अथवा जिस कन्या के साथ सगाई हो चुकी है किन्तु विवाह नहीं हुआ है उसके साथ गमन करने के लिए आलाप संलापादि करना अतिचार है क्योंकि वह अपनी होते हुए भी अभी अपरिगृहीता है।। (३)अनंग कीडा-कामसेवन के प्राकृतिक अङ्ग के सिवाय अन्य अङ्गअनङ्ग कहलाते हैं, उनसे क्रीड़ा करना अथवा हस्तकर्म करना / (४)परविवाह करणे-अपना और अपनी सन्तान के सिवाय दूसरों का विवाह कराने के लिए उद्यत होना। . यदि स्त्री व्रत धारण करे तो स्वपतिसंतोषपरपुरुषसंसर्ग का त्य
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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