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________________ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला थोड़ा थोड़ा भोज गया और सभी को ठीक किया स्वादिष्ट तथा गरिष्ट भोजन बनवाए । उन्हें बहुत ज्यादह खाजाने से वह बीमार पड़ गया। उसी से उसका देहान्त हो गया। मन्त्री ने वैद्य की सलाह के अनुसार थोड़ा थोड़ा भोजन करके अपनी पाचन शक्ति को ठीक किया। धीरे धीरे वह पूर्ण स्वस्थ हो गया और सभी सुख भोगने लगा। . इसी प्रकार जो व्यक्ति धर्म के विषय में दूसरे दर्शनों की आकांक्षा करता है वह स्वर्ग मोक्ष प्रादि सुखों को प्राप्त कर नहीं सकता। मिथ्यात्व को प्राप्त करके नरक आदि गतियों में भ्रमण करने लगता है। इस लिए मुमुच को आकांचा दोष से रहित रहना चाहिए। (७) विचिकित्सा दोष के लिए विद्या देने वाले पणिक का उदाहरण श्रावस्ती नगरी में जिनदत्त नाम का श्रावक रहता था। वह नव तत्वों का जानकार, बारह व्रतो काधारक तथा आकाशगामी विद्या काज्ञाता था। वहीं पर उनका मित्र महेश्वरदत्त रहता था । किसी बात से उसे मालूम हो गया कि जिनदत आकाशगामी विद्या को जानता है। एक दिन उसके पास आकर कहने लगा--कृपा करके मुझे भी यह विद्या दे दीजिए जिससे मैं भी आकाश में चलने लग नाऊँ। जिनदत्त ने दुःसाध्य कहते हुए उसे सारी विधि बता दी। महेश्वरदत्त सारी विधि तथा मन्त्र को सीख कर उसके अनुसार सिद्ध करने के लिए कृष्ण चतुर्दशी को श्मशान में गया। एक वृक्ष की शाखा से चार पैरों वाला छींका वाँधा। नीचे खाई खोद कर उसमें खदिर की लकड़ियाँ इकट्ठी करके भाग जलाई । छींक में बैठ कर १०८ चार मन्त्र को पढ़ा। इसके बाद वह मन में सोचने लगा-अब मुझे छींके का एक पैर काट देना चाहिए । इसी प्रकार मन्त्र को जपते हुए चारों पैरों को काटना है। मालूम नहीं विधासिद्ध होगी या नहीं। अगर तब तक विद्या सिद्ध न हुई तो मैं भाग
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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