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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला ४४४ हुई जिसके सिर को खाने लगीं ऐसे दुष्कर कार्य को करने वाले चिलातीपुत्र को नमस्कार हो I धीरो चिलाई पुतो जो मुइंग लियाहि चालपिच्च कथा | सो तहवि खज्जमा, पडिवो उत्शमं अत्थं ॥ अर्थात् -चिलातीपुत्र बड़े धीर हैं। चींटियों ने उनके शरीर को चलनी बना दिया फिर भी वे विचलित नहीं हुए। चींटियों द्वारा खाए जाते हुए भी उन्होंने उत्तम अर्थ को सिद्ध किया । अड्डाहज्जेहिं राईदिएहिं पत्तं चिलाई पुनेणं । देविंदामरभवणं अच्छरगुण संकुलं रम्मं ॥ अर्थात् अढ़ाई दिन रात के संयम से चिलातीपुत्र ने विविध प्रकार के सुखों से भरे स्वर्ग को प्राप्त किया । - इस प्रकार संक्षेप से चिलातीपुत्र का चरित्र कहा गया । विस्तार से इसका विवरण उपदेशमाला से जानना जाहिए । I नोट - चिलावीपुत्र की कथा ज्ञाताधर्मकथाङ्ग सूत्र, प्रथम श्रु तस्कन्ध के १८ वें अध्ययन में विस्तार से दी गई है। यहाँ नवपद प्रकरण के अनुसार लिखी गई है। ( ३ ) सम्यक्त्व से भ्रष्ट होने वाले नन्द मणिकार की कथाराजगृह नगर में नन्द नाम का मणिकार रहता था। भगवान् महावीर का उपदेश सुन कर उसने श्रावक व्रत अङ्गीकार कर लिए। इसके बाद चिर काल तक उसे साधु का समागम नहीं हुआ और न कभी सत्य धर्म का उपदेश सुनने को मिला । मिथ्यात्वी कुसाधुओं के परिचय से सम्यक्त्व में शिथिल होते हुए उसने मिथ्यात्व को प्राप्त कर लिया । 1 एक बार ग्रीष्म ऋतु में उसने चौविहार अट्टम तप किया। तीसरे दिन रात को जोर से प्यास लगी। उसी समय वह मन में सोचके लगा-- वे लोग धन्य हैं जो नगर से बाहर कूए, बावड़ी, तालाब ·
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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