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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग ४२३ इस प्रकार के सम्यक्त्व रूपी रत्न की प्राप्ति दो कारणों से होती है-दूसरे के उपदेश की सहायता के विना जातिस्मरण से अथवा दूसरे के उपदेश से। (१) जातिस्मरण से सम्यक्त्व प्राप्ति के लिए श्रेयांसकुमार का उदाहरण भारतवर्ष के गजपुर नगर में सोमप्रभ नाम का राजा राज्य करता था। वह भगवान् ऋषभदेव का पौत्र और तक्षशिला के राजा वाहुवलि का पुत्र था । सोमप्रम के श्रेयांस नाम का युवराज था । वह बहुत सुन्दर, बुद्धिमान् और गुणी था । एक दिन रात को उसने स्वप्न देखा-काले पड़ते हुए सुमेरु पर्वत को मैंने अमृत के पड़ों से सींचा और वह अधिक चमकने लगा। उसी रात को सुबुद्धि नाम के सेठ ने भी स्वप्न देखा कि अपनी हजारों किरणों से रहित होते हुए सूर्य को श्रेयांसकुमार ने किरण सहित कर दिया और वह पहले से भी अधिक प्रकाशित होने लगा। राजा सोमप्रम ने भी स्वप्न देखा कि एक दिव्य पुरुष शत्रुसेना द्वारा हराया जा रहा है, उसने श्रेयांसकुमार की सहायता द्वारा विजय प्राप्त कर ली। दूसरे दिन तीनों ने राजसभा में अपने अपने स्वप्न का वृत्तान्त कहा । स्वप्न के वास्तविक फल को विना जाने सभी अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार कुछ कहने लगे। इस बात में सभी का एक मत था कि श्रेयांसकुमार को कोई महान् लाभ होगा। राजा, सेठ तथा सभी दरवारी अपने अपने स्थान पर चले गए। श्रेयांसकुमार अपने सतमंजले महल की खिड़की में पाकर बैठ गया। जैसे ही उसने वाहर दृष्टि डाली, भगवान ऋषभदेव को पधारते हुए देखा। वे एक वर्ष की कठोर तपस्या का पारणा करने के लिए मिक्षार्थ घूम रहे थे। शरीर एकदम सूख गया था। उस समय के भोले लोग भगवान् को अपना राजा समझ कर अपने घर निम
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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