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________________ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला कथा भी दिगम्बर परम्परा में प्रसिद्ध है। ज्ञात अर्थात् ज्ञात-ज्ञात पुत्र से कही गई धर्म कथा ज्ञातधर्मकथा । श्वेताम्बर परम्परा के आगमों में भगवान को 'णाय' अथवा 'णात' तथा 'णायपुत्त' अथवा 'णातपुत्त' नाम से कहा गया है। मैं समझता हूँ कि 'पाय' की अपेक्षा 'पात' पाठ विशेष प्राचीन है। 'णात' का संस्कृत परिवर्तन 'ज्ञात' तो होता ही है परन्तु 'ज्ञा' भी हो सकता है। पितृ' पद का प्राकृत परिवर्तन 'पित' भी होता है और 'पिय' भी। उसमें भी 'पिय' की अपेक्षा 'पित' उच्चारण भाषादृष्टि से विशेष प्राचीन है। इसी प्रकार प्राकृत 'णात' का संस्कृत परिवर्तन श्वेताम्बरों ने 'ज्ञात' किया तो दिगम्बरों ने 'ज्ञात' किया। इनमें मात्र अक्षर भेद है किन्तु अर्थ मेद नहीं है। गोम्मटसार के रचयिता ने 'नाथधर्म कथा' नाम लिख कर 'नात' पद को अपनाया है तो राजवातिककार ने (भट्ट अकलङ्क देव ने) 'ज्ञातृधर्म कथा' कह कर 'ज्ञात' पद की स्वीकृति की है। इस तरह दिगम्बर परम्परा में 'ज्ञात' और 'ज्ञात' दोनों का प्रचार हुआ है । बौद्ध पिटकों के प्रकाएड पंडित और इतिहासज्ञ श्री राहुल सांकृत्यायन कहते हैं कि वर्तमान में विहार में 'झथरिया' गोत्र के क्षत्रिय लोग विद्यमान हैं। वे झथरिया लोग भगवान महावीर के वंशज है। 'ज्ञात' का प्राकृत में एक उच्चारण 'जात' भी होता है और 'ज्ञात' का 'जातार। . श्री राहुलजी का मत है कि गोत्र सूचक 'झथरिया' शब्द का सम्बन्ध उक्त 'जात' अथवा 'जातार के साथ है। जैनसंघ का कर्तव्य है कि भगवान् के वंशजों की परिशोध करके उनके अभ्युदयार्थ सक्रिय प्रवृत्ति करें। (६) वेसालिय-वैशालिक। सूत्र कृताङ्ग (द्वितीय अध्ययन तृतीय उद्देशक) में भगवान् को 'वेसालिय' नाम से सूचित किया है। 'विशाला' विहार की एक प्राचीन नगरी का नाम है। वर्तमान
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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